भद्रबाहुसंहिता | Bhadrabahusanhita

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Book Image : भद्रबाहुसंहिता  - Bhadrabahusanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ भद्वाहुसंहिता अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बताया गया है कि--घिनिष्ठा उत्तराभावपद, अश्विनी, कृत्तिका, सुगशिरा, पुष्य, मधा, उत्तराफाणगुनी, चित्रा, विशाखा, मूल एवं उत्तराषाढ़ा ये नक्षत्र कुक संशक; भ्रवण, पूर्वाभाद्वपद, रेवतो, भरणी, रोहिणी, पुनवसु, आश्टेषा, पूर्वाफाल्गुनी, दस्त, स्वाति, ज्येष्ठा एवं पूर्वाषाढ़ा ये नक्षत्र उपकुछ संज्ञक भौर अभिजित्‌, शतभिषा, भार्द्धों एवं अनुराधा कुलोपकुर संश्क हैं ।'” यह कुलोपकुलका विभाजन पू०मारसीको होनेवाले नज्नत्नोंके आधार पर किया गया है। अभिम्राय यह दे कि श्रावण मासके धनिष्ठा, धवण भौर अभिजित्‌; भाद्रपद मासके उत्तराभाद्वपद, पूर्वाभावपद भौर शतभिषा; आश्विन मासके अश्विनी भौर रेवती; कात्तिक मारके कृतिका भौर भरणी; अगन या मागंशीषं मासके सगरा জীহ रोहिणी; पौप माके पुष्य, पुनवंषु जौर आद्र; माघ मासक मघा भौर लाश्रेषा; फास्गुनी मासके उत्तराफल्गुनी भौर पूर्वाकाल्गुनी, चेत्र मासके चित्रा भौर हस्त; वशाल मास्षके विशाखा ओौर स्वाति; ज्येष्ठ मासके उयेष्ठा, मूल और अनुराधा एवं आपाढ़ मासके उत्तरापादा और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र बताये गये ह ! प्रव्येक मासकी पूणमासीको उस मासका प्रथम नकत्र कुल संज्ञक, दुमर! उपकुल संक भौर तीसरा कुरोपङुर संज्ञक होता है । इस वणं नका प्रयोजन उस मद्दीनेके फरकादेशसे सम्बन्ध रखता है । इस प्रन्थमे ऋतु, भयन, मास, पर, नक्षत्र भौर तिथि सम्बन्धी चर्चाएँ भो उपलब्ध हैं ! समवायाङ्गमे नकत्रोकी तारा, उनके दिशाद्वार जादविका वणन है! कहा गया है--“कत्ति- आइया सत्त णक्खत्ता पुठ्वदारिआा | महाइया सत्तणक्खत्ता दाहिण दारिआ | अणुराहाइआ सत्त णक्खत्ता अबदारिया । धणिदट्ठाइआ सत्तगक्खत्ता उत्तरदारिआ !?--सं० आं० सं० ७ सू० ४ जात्‌ कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनवसु, पुष्य जोर आश्लेपा ये सात नक्षत्र पूर्व द्वार, मधघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाव्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशास्तरा दक्षिण द्वार; अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल पूर्वाषाढ़ा, उत्तरापाढ़ा, अभिजित्‌ और श्रवण ये सात नक्ञत्र पश्चिम द्वार एवं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वामाद्र- पद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, लरिवनी भौर भरणो ये सात नक्र, उत्तर द्वार वाछे हैं। समवायाह्ञ १1६, २।४, ३।२; ४।३, ५।६, भौर ६।७ में भाई हुई ज्योतिष चर्चा भी महस्वपूर्ण हैं । डाणाङ्गमे चन्द्रमा साथ स्पशंयोग करनेवाले नज्ञश्नोंका कथन किया है। बताया गया है-- +कृत्तिका, रोहिणी, पुनवसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्टा ये भाठ नक्षत्र स्पश योग करने- वाले हैं ।” इस योगका फल तिथिके अनुसार बतलाया गया हे । हो प्रकार नक्षश्रौकी अन्य संज्षाएँ तथा उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूव दिशाकी ओर्से च-द्रमाके साथ योग करनेवाले नज्ञश्रोके नाम और उनके ক্ষত घिस्तार पूचक बतलाये गये हैं। अशंग निमित्तज्ञानकी चर्चाएं भी आगम प्रन्थोमें मिलती हैं। गणित और फलित उ्योतिषकी भ्नेक मौलिक बातोंका संग्रह आगम ग्रस्थोंमें है । फुटकर ज्योतिषचर्चाके अलावा सूयप्रज्ञप्ति, चन्द्रत्श्ञप्ति, ज्योतिषकरण्डक, अंगविज्ञा, गणिविज्ञा, मण्डलप्रवेश, गणितसाससंग्रह, गणितसूत्र, गणितशाख, जोइसार, पश्चाज्ननयन पिधि, इृष्तिथि सारणी, १--ता कहते कुछा उवकुला कुलावकुला अद्वितेति वदेज्जा | तत्थ खड़ इमा बारसकुछा बारस उपक्रुला चत्तारि कुखवकरुख पण्णत्ता । बारसकुला त॑ जहा--धणिषट्टा कुछं, उत्तरामदवयाकुर्ल, भस्सिणी कुतं, कत्तियाकुलं, मिगसिरकुछं, पुस्सोकुलं, महाकुलं, उत्तगाफग्गुणीकुलं, चित्ताकुलं, विसाहाकुलं, मूलोकुलं, उत्तरासाणकुल ॥ बारस उवकुला पण्णत्ता त॑ जहा सबणों उवकुलं, पुव्यभदबया उबकुल रेबति उबकुलं, भरणि उबकुलं, रोहिणी उबकुलं, पुणवसु उबकुलं, असलेसा उबकुछ॑, पुव्वफग्गुणी उबकुलं, इत्यो उबकुछं, सांति उबकुलं, जेद्दा उबकुलं, पुब्वासादा उवकुलं || चत्तारि कुलाबकुल पण्णत्ता त॑ं जहा--अभिनिति कुछाब- सतमिसया कुलाबकुलं, कुल, अद्दाकुलावकुलं अपणुगह्ा कुलाबकु् ॥-पु० का० १०, ४. २--अहं नक्लत्ताणं चेदेण सदधि पमडं जगं जोएश त° कत्तिया, रोहिणी, पुणवस्सु, महा, चित्ति, विसाहा, अणुराहा जिद्वा--ठा० ८, सू १००




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