पृथ्वीराज रासो की विवेचना | Prathvi Raj Raso Ki Vivechana

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Prathvi Raj Raso Ki Vivechana by श्री मोहनलाल व्यास शास्त्री - Shri Mohanlal Vyas Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना | ९३ साहित्य-संस्थान राजस्थान विद्यापीठ से ५थ्वीराज रासो का नवीन संस्करण प्रकाशित होने पर यह आवश्यक समा गया करि आलोचनात्मक दृष्टि से रासो पर विवचना खरूप एक स्वतन्त्र श्रन्‍्थ अकाशित किया जावे, जिससे श्रान्ति-मूलक' सारी वातों का निराकरण होकर उसको विशेषताएं, भाषा, काव्य-सौष्ठव आदि त्रिषयों पर समुचित रूप से सही-सही श्रकाश पड़े, एवं उसके ठीक-ठीक रूप का दिग्द्शल होजञावे | तदूनुसार राजस्थान विद्यापीठ द्वारा भारत सरकार के सामने यह योजना प्रस्तुत कीआने पर वह स्वीकार कीगई और भारत सरकार के शिक्षा विभाग ने इस ग्रन्थ के श्रकाशनाथ दस हजार रुपये प्रदान किए । एक वर्ष से अधिक समय तक राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर. इस वात के लिए प्रयह्लशाल रही कि कोई योग्य अधिकारी विद्वान्‌ इस गहन विपय को हाथ में लेकर आलोच्यरूप से रासो पर विवेचनात्मक ग्रन्थ की रचना करे और राजस्थान विद्यापीठ उसको प्रकाशित करे; परन्तु कोई भो समर्थ विद्वान्‌ उसके ज्िए उद्यत नहीं हुआ! कारण कि रासो जैसे विशालकाय और विपद्‌ काव्य-अन्थ की विवेचना लिखना सामान्य बात नहीं है। उसके लिए गंभीर अध्ययन और पर्याप्त समय चाहिये । अतएव इस कायं को राजस्थान विद्यापीठने अपनेदही तोर पर उदयपुर के विद्धानां के परामश के अनुसार जिनमे डा०मोतीलालजो मेनारिया, एस० ए०, पी एच० डी०, श्री विष्णुरामजी नागर एस०ए०, श्रौ रलचद्रजी अग्रवाल एम० ए० और डा० गोपीनाथजो एम० ए०, पी एच० डी० सम्मिलित हूँ-- सम्पूर्य कराना स्थिर किया, एवं साहित्य संस्थान के निर्देशकृश्री मोहनलाल व्यास शास्त्री के संयोजकत्व एवं सामान्य संपादन में साहित्य संस्थान द्वारा ही कार्यारंस किया गया . श्री लाथून्ञाल व्यास ने ऐंवह्सिक सामग्री के संचय एवं सम्पादन कार्य में सहयोग दिया । साहित्य-संस्थान के ढप्रथ्वीराजरासो” के सम्पादक कविराव श्री मोहनसिंहजी ने अन्थ सम्पादन में महत्वपूर्ण सहकार क्रिया है । साहित्य संस्थान की ओर से आगे रासो के साहित्यिक तथा ऐतिहासिक अध्ययन सम्बन्धी दो और माग प्रकाशित करने की योजना है । प्रस्तुत अथम भाग के तीन विभाग किये गये हैं--प्रथम विभाग में विरोधी ৯১৩ স্ < ^ नवन्ध ক, ৯৬ ২৯ ই, विचार धारा के विद्वानों के महत्वपूर्ण निवन्ध रखे गये हं, जो इस भकार टं




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