तेलुगु और उसका साहित्य | Telugu Aur Unka Sahitya

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Telugu Aur Unka Sahitya by श्री हनुमच्छास्त्री -Shri Hanumchchhastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेलुगु-प्रदेश, जनता तथा भाषा ` १७ भापा ध्रा्र, तेनुगु शरोर तेलुगु श्राटवि नामो से यद भाषा श्रभिदित दोरी है। प्राचीन काल में श्ीनाथ कवि ने 'कर्णाटक! शब्द से भी इस भाषा का नव्यवह्र किया था। परन्तु कर्णाटक शब्द का प्रयोग बड़े ही व्यापक अर्थ मे हुआ। आजकल यह शब्द दस भाषा के लिए प्रयुक्त नहीं होता । प्रायः आराष्र! হাল से सस्कृतनिष्ठ मापा का, 'तेनुगुः और 'तेलुगः शब्दों से ऐसी मापा का बोध होता है जिसमें सस्कृत-शब्दों का प्राचु्य न हो | इस शब्दों की उत्तत्ति के विषव में हम पोछे लिख चुके हैं। तेलुगु भाषा के विकास के सम्बन्ध मे प्रधानतः विद्वानों में दो मत प्रचलित है | एक मत के उन्नायक डॉ० नारायणुगव थे, जिनके श्रनुसार तेलुगु द्राविड भाषा न दक्र आइत-जन्य भाषा है, विशेषतः उसका सम्बन्ध पैशाची प्राकृत से है । दूसरे मत के उन्नायऊ़ विशप काल्डवेल तथा कोराट ग॒मकृष्णय्य श्रादि सज्जन हैं, जिनके अनुमार तेलुगु वा बोई सम्बन्ध किसी ग्राकृत भाषा से न होकर, उसका सीधा सम्बन्ध द्राविट्र-परिवार से है । सम्भव है, इन दोनो मतों में सचाई का श्रश उटुत-कुछ हो और 'तेलुग का विकास दोनों प्रकरों की भाषाग्रं के साम्मलन से हुआ हो | डॉ० नारायशगव तो तमिल शब्द কী ওলি মা द्राविट! शब्द से न मानकर सस्कृत के 'घर्मिलः अववा प्रादृत के ध्रमिल' शब्द ते मानते हैं| जो कुछु भी हो, आजकल आर तिलुगुः तथा ्नुगु! शब्द एकाथवादी हो गए है. और इस भापा से लिस्स-देद्ट ७५ प्रतिशत संस्कृत-शब्दो वा समावेश है । सस्कृत दा स्वस्थ तथा उपादेय प्रभाव तेलुगु भाषा और साहित्य पर पडा हे । तेलु अ्रपने नदऊ माय के लिए अमिद्ध ই | সন অহন গর तेलुगु का मशि- काचन-सयोग শো ই। লহান্‌ साहित्य-मेद्री ओर महाराज श्री কইল रापलु ने (डिन्दान तेजुगु के कपियों मे ही नरी, तमिल तया कन्नड श्रारि তুন্রণী শাাসা ছি অবিহা ধী লা সা दिया ) घुक्त रण्ठ से चोपित स्वि উকি देशी भाषाओं में 'हिठुग লা माव न्तु है। पाश्चान्य विद्वानों ने भी




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