छायावाद के आधार स्तम्भ | Chayawad Ke Adhar Stambh

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Book Image : छायावाद के आधार स्तम्भ  - Chayawad Ke Adhar Stambh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ च्ायानाद और रह्स्यनाद भविष्य में यदि इतिहासकार वर्तमाव युग के मामकरण की चेप्टा करेंगा तो उसे विश्येप परिश्रम नहीं करना पटेगा । बड़ी सरलता से वर्तमान युग फो बाद युग कह सकते हैं; श्रीर इसमें किसी को भी तर्क-बितर्क तथा भाव की दृष्टि से आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि वर्तमान युग की सभी प्रस्यक्ष एवं श्रप्रत्यद वस्तुओं तथा सूक्ष्म तत्त्वो पर दम॒ वाद की श्रमिद छाप इतनी व्यापकता एवं गहराई से लग गई है कि उसको नगण्यता में ढकेलना श्रसम्भव प्रतीत होता है । जगत में अ्रनेक वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो किसी भी प्रकार की हृप्ट एवं श्रदृप्ट सीमाग्रों में परिमित तथा आावद्ध नहीं की जा सकती | उनको किठ्ती सीमित विजरे में बन्द करता उनके हृदय को परिच्छिन करना है । कला शौर जीवन सचेतन की दो उन्पुक्त विभृतियाँ हैं; वे फूल के सौरभ की भांति स्वच्छुन्द एवं निर्मर की गति की भाँति निवेन्ध हैं; उन पर किसी भी बाहरी नाम की श्रथवा स्वभाव की आरोपणा एक कठोर प्रतिवन्धना है । किन्तु वर्तमान युग का 'वाद!- परिप्लुत व्यक्ति, जीवन श्रीर कला को भी 'दाद' के चश्मे से रहित नेन्न से नहीं देख सकता । कविता जैसी विद्वविहारिणी सूक्ष्मतम विभ्रूति को मी उतने वाद के कठघरे में कैद कर दिया । वर्तमान युग के कंठ से प्रसूत काव्य-वाणी इसी भ्रवृत्ति से लाचार होकर “छायावाद' के रंग से रंजित दीखती हैं । किन्तु यहीं तक समाप्ति नहीं है । उसे 'छाया' की चादर के साथ-साथ ' रहस्य' की परोक्ष चुनरी भी ओोढ़नो पड़ी है । इस अकार छायावाद तथा रहस्यवाद को परिव्याप्ति तथा वर्तमाव कविता ~




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