मानव-संस्कृति के आदि-पुरस्कर्ता भगवान् ऋषभनाथ | Maanav-Sanskriti Ke Aadi Purskarta Bhagwan Rishabhnath

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Maanav-Sanskriti Ke Aadi Purskarta Bhagwan Rishabhnath by नेमीचन्द्र जैन - Nemichandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महापुरुष जो समस्त जीवधारियो को यह बताता हो कि वे स्वयं के पति है-हर तरह से स्वाधीन है। जो समस्त प्राणियो की स्वाधीनता ओर स्वाभाविकताओ को जगाता है, उन्हे उने वास्तविक पुरुषार्थ के दर्शन कराता है, वह है सच्चा प्रजापति। जो प्रजाओ का पति नही है, बहिः जो उनके स्व-स्वामित्व के मर्म को समञ्चता है, उनके सम्यक्त्व मे प्रकट करता है, उन पर से तमा आवरण हटाता है, वह है प्रजापति, प्रजापतित्व अर्थात्‌ मिथ्यात्व का पटाष्षेप | सम्यक्त्व क] परोस्थान। लाखो वर्ष हुए जब प्रजापति भगवान्‌ ऋषभनाथ ने हमारी इस धरित्री को धन्य किया था उनके पुत्रो मे-से भरत के नाम पर इस महान्‌ देश का नामकरण भारत हुआ और प्रथम मोक्षगार्म बाहुबली ने युद्ध-जैसी विभीषिका को एक अहिसक और दार्शनिक मोड दिया। इस आलोक- ्रिभुज-आदिनाथ, भरत, बाहुबली -मे न केवल इस देश अपितु पूरे विश्व-धर्म की व्याख्य सभव है, उसे समझा जा सकता है । आज जब कि पुरे विश्च की कृषि-सस्कृति खतरे मे है, प्रजापति भगवान्‌ आदिनाथ- ऋषभनाथ का जीवन-दर्शन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होने के साथ-ही-साथ प्रासंगिक है| पश्चिम मे कृषि (फार्मिग) के जो विषम अर्थ विकसित हुए है, हमे उनके अनुकरण और अनुसरण पर अपने देश की गौरवशाली संस्कृति के ताने-बाने छिन्न-भिन्न नही करना है, वरन अपनी मौलिकता को अपने श्रम, विबेक, ज्ञान और बाहुबल से अधिक सुरक्षित और अहिसक बनाना है। कहाँ बीज-जैसा निर्मल आविष्कार और कहाँ फैक्टरी-फार्मिंग, पौल्ट्री-फार्मिग, फिश-फार्मिंग, मीट- फार्मिंग, वार्म-फार्मिंग, कैमल-फार्मिंग इत्यादि | क्या हम अपनी सांस्कृतिक मौलिकताओ के साथ यह क्रूर कीडा होने देगे और कृषि के अर्थ को दूषित बनायेगे ? क्या हम हिसा और अहिसा को एक-जैसा सम्मान देगे ? क्या हमारी सरकारे सहज कृषि और पौल्ट्री-कृषि आदि को तुल्य श्रेणी मे रखने का पार्पाजन-दुस्साहस करेगी ? हमारा दायित्व है कि हम प्रजापति भगवान्‌ ऋषभनाथ के भारतीय सस्कृति को प्रदत्त ` गदान को पूरी शक्ति के साथ उजागर करे और अनगिनत क्रूरताओ तथा विकृतियो के बढते कदमो को रोके। १६ ^ भगवान्‌ ऋषभनाथ




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