गंगा लौट हिमालय आए | Ganga Laut Himalay Aae

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Book Image : गंगा लौट हिमालय आए  - Ganga Laut Himalay Aae

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[17 श्री राम उवाच-9 পাপা “~ जीते हुए मानसिक यातनाओं का सामना करते हैं। तब हम न जाने कितने-कितने तनावों और मानसिक यंत्रणाओं को सहने के लिए विवश हो जाते हैं। अनेक बार यह भी देखा जाता है कि व्यक्ति अंदर ही अंदर टूट जाता है, गमगीन बना रहता है। परिणामस्वरूप आत्महत्या तक के विचार उसमें उत्पन्न होने लगते हैं। ऐसा क्‍यों होता है ? क्योंकि उसने स्वयं कौ पहचान नहीं की होती है। वह बाहर ही बाहर भटकता रहा होता है। बाहर भटकने वाला बाहर से तो बहुत-कुछ अर्जन कर लेता है, पर स्वयं का जो अर्चन होना चाहिए, वह हो नहीं पाता। अंतर में जो परमात्मा का अर्चन होना चाहिये, वह घटित नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में वह भयाक्रांत बना रहता है। अनेक प्रकार के भयों से भयभीत होता है। जिस समय वह भयभीत होता है, उस समय उसके भीतर एक रसायन पैदा हो जाता है। उसे इसका अनुभव नहीं हो पाता, किन्तु आज का विज्ञान इस मानसिक अवस्था के प्रमाण प्रस्तुत करता है। एक व्यक्ति प्रफुल्लता में प्रवाहित हो रहा है तब उसके शरीर के, रक्त की शोध की जाये ओर एक जब भयभीत है तब उसके खून का टेस्ट किया जाये तो दोनों की रिपोर्ट में अंतर आयेगा। वह अंतर यह झलकाता है कि अमुक व्यक्ति अभी भय की अवस्था से गुजर रहा है। कवि आनन्दघनजी कहते हैं- भय हमें साधना में गति करने नहीं देता, स्वयं की पहचान नहीं करने देता। अनेक प्रकार के भय वह बाहर की पोजीशन से इकट्ठा करता रहता है। एक सम्रार्‌ के मन में भाव जगा कि मैं अपना सुन्दर फोटो बनवाऊँ ? कभी-कभी ऐसी भावना जग जाती है। आज का मनुष्य तो विशेष रूप से अपने फोटो का प्रेमी बन गया है। एक समय था, जब व्यक्ति नाम से राजी हो जाता था। उसने दान दिया और उसका नाम अखबार में आ गया तो वह राजी हो जाता, पर आज नाम से संतोष नहीं होता। नाम के साथ वह अपना फोटो भी प्रकाशित हुआ देखना चाहता है। और 'फोटो केसा होना चाहिये ? क्‍या उसमें आँखें टेढ़ी-मेढ़ी हों, कपड़े फटे हों, नाक भौंडी हो, ऐसी होनी चाहिए ? अरे व्या बतायें, फोटो खिंचवाने के लिए किसी वृद्ध पुरुष से कह दो तो वह भी बन-ठनकर, साफा-पगड़ी




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