कुबेर [सामाजिक उपन्यास] | Kuber [Samajik Upanyas]

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Kuber [Samajik Upanyas] by देवीप्रसाद धवन - Deviprasad Dhawan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫3 युवक चुप था । मामी ने फद्टा--''पार जाना चाहते हो १ उसका झुँ 6 सुज्ञा--' हाँ ।?! नतो धायया (! कहकर सौँझी ने डाँद उठा लिए । युय गंभीर साय से नाव पर घ़ गया। नाव उलने लगी। संध्या के मुख्पुटे में भी मौसी ने समझे लिया कि युवक श्राव- दैगफता से रधिक खिंतित है । वं चन रहै चे, ससा मामी ऊषु गुनगुना उठा | जया गाना मी तानते षो १ चुवकने पषा । न्रे अपा 1 ममि ने स्कर उत्तर दिया) युमगुश्खोद्दिपे 1 লাঁলী चुप । युषक भौ चुप । दाद पल रये + पकएक सर्ति ने -पका-- वर्प सस्पोगे मष ¢ पु यत ५३ गाय 3 र # हरापपुर | कया নিরাশ ই ল্য बहुत बड़े सामी | पया उन्हीं ८ पा का 4 বাহে শষ লি আকাম আয । সহ শীট খাসি १ गधरे যা




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