हिंदी काव्य शास्त्र का इतिहास | Hindi Kavy Shastra Ka Itihas

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Hindi Kavy Shastra Ka Itihas by दीनदयालु गुप्त - Dindayalu Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ग} का इतिहास जिखने की प्रेरया आष्त हुई, क्‍्पोकि क्राब्य-शास्त्र के क्ोरे प्विद्धान्द जान सना और मापा में उन ठिद्धान्तों की चचा दिस प्रकार स होती रही है, यह ने जानना विय था अधूय और दब्पवद्धारिश शान ही आप्त करना है । श्रपनी माषा एष्य यास्त फ दरिद्र फे पटने पर इस काब्य-शास्त्र की समुचित ब्शखज्या और उसक लिए धावश्पक इाष्ि प्राप्त करते हैं | ऋठा इस कम को ९विं करना मी झावश्यक था । হিন্হী ক্যাচ হাছন ঈ लखड़ों पर कुछ प्रदाश दिदी साहित्य के इतिहास में झाला गया है | पंद्वित रामचन्ध शुस्त के 'हिन्दी सादित्य छा इतिद्ास में ०३ री'त-्य्र-यकार कवियों एवं उनऊ ঘা रा सालुप्त परिरय है, पर है षट समस्त सा त्य फे इतिहास क्री इप्टि सेए उश्च वेग वर्म विपय का नाममात्र ही पाया जाता है | विवेचन तो दूर रहा, परिचय भी पूरा नहीं ह। पमिश्ररघु विनोद! के चारों खरहों में १०० के लगभग कुईदियों के लास मिते हैं जिनमें से २० २१५ के विपरण को छोड़कर शुप का 31 नामोल्लस माष दै 1 उनकं ध्यनमे नाम स्वना-घ्रल् प्रथ, धए्य विषयं फ परिचय फ अ्रविरित्त और कुछ नहीं ऐ। हाँ, यह आवश्यक है क्लि शिकांश छखड्टों फ नाप इसमें मिष जाते ই। শুন जो के इतिहास में रोतिप्र यश्ार र रुप में एक साथ ऋमरद्ध घणन रीविडालीन फ्राय शास्त्र क॑ छ्लेखफ़्ों का मिलता है पर 'मिप्रथु विनोद! में झ्राू्य शास्त्र फ लेखकों का विवरण झलग नहीं ऐ श्रय लेखको क खाय शो बीच-बीच में ये विवरण थाये है) हाँ, शिवाय माग में पूषालइ्त और उत्तराल्टत प्रकरणों फ कूप में इस फ्राल फ लेखकों फे নান दिये गये हैं, पर घणन में सभी प्रकार फे कबि आय है । श्रते वर्धा भी एक साथ ऋमपदध सभा पूण विवरण नसे प्राप्ठ धे ! शखठ निष मे ए्न दविष्ठशे धौर सोज सिये प धाघार्‌ प्र तथाः श्रन्य भ्यक्िगव एष राग-पुस्वकालयी स प्राप्त चना के सरे, १५७ अपो के नाम और अधिकांश के अपनी थ्राँखों देखे विवरण प्राप्त कर, ऐतिहासिक क्रम से उनफ वणन दिये गये ई । प्रस्तुत निघ में दिय गये ग्रय1 म॑ से यारह व! एसे हैं जिन बन्यों के शयवा लेसक और ग्रय दोनो फ, नामों तक का ठत्नंख श्रमी तक के किसी साहित्य फे इविद्ाय में नहीं है कार नकोइ थय विवरण झ्रदी स मिलता ह। उदाइस्प के लिए योप के থাম মৃত্য হীং 'रामबद्धामरण ग्रायों का विवरण कक्‍हों नहींमिलता। इनके 'गमालकार प्रप का उल्त्खमात्र ह मिश्रप॒षु विनोद! में हुआ है। लेखक का ये झप दिया और दीद्यद क राज पुस्तक्यलयों में इस्तलिछिव रूप में देखन को সার हुए। कृ्यमद देवऋषि की यार रस माधुरी', रग खा का नायिका मेद!', उजियारे कृवि के ससचान्दका! और 'डुगुलरत प्रकाश? अनराज का “कषिता रख विनोद्‌ वया सेवादास का




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