रेखाएं | Rekhayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विचित्र-चाह
भूला-भटका पथिक्र उसके द्वार पर रुका।
“तुम क्या चाहते हो राही १” उसने पूछा। “बाले |“ पथिक ने कहा
“वह जो अधखिला ছু तुम्हारे जूड़े में स्थान पा गया है, उसकी एक
पंखुरी मात्र !”
“कैसे विचित्र हो तुम ! भूखे हो, भोजन नहीं चाहते, थके हो, विश्राम
की इच्छा नहीं करते, ओर प्यास से तुम्हारा कंठ सूख रहा टै परन्तु तुम
जल भी नहीं चाहते | चाहते हो फूल की पंखुरी मात्र ! केसे अनोखे हो तुस |“
पथिक चुप रहा!
“श्रो मेरे श्रतिथि | उसने कदा “यह फूल तो चढ चुका है, तुम्हारी
याचना कैसे पूणं क 2 “में लोट जाऊँगा देवि, चिन्ता न करें ”
जिस पथ से आया था उसी पथ से पथिक लोट चला !
सुग्धा-सी, खोई-सी वह खड़ी ही रह गई | न जाने कब ओर कैसे उसका
हाथ जूडे से से चुप चाप फूल की एक पंखुरी चुन लाया,
भावावेष में उसने चह पंखुरी उसो पथ पर डाल दी जिस पथ से उसका
अतिथि लीठा धा ! हवा का एक भोंका पंखुरी को उड़ा ले गया-
कहों ? किसके पास 2
( १९३ )
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