शेर ओ सुखन भाग - ५ | Sher O Shukhan vol-V
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ
= ९ ~
मिल जाता है। पर तुम जानो, भ्रकान और 'ज्योर्त/ जैसे भाई लोगोंके बगैर
क्या ताभका मज़ा ? वे ज्ौक़की महफिलें थी, यहाँ घंवा समझो ।
तुम्हीं कहो कि युद्धाय स्तनस-परस्तोका =
बुतोकी हो अगर ऐसी ही खू तो क्यों कर हो ? ;
रावलूपिण्डी १८-१२-४६
- ““त्रका उत्तर तो तुरन्त दोगे ना ? अरे वावा मुझे कहो ती में
डालमियानगर भी आनेको तैयार हूँ। साइल का वह गेत्र याद दिका दू--
बदे-चभुदा वोह भा जायें, न जायें मुझको बुलवालें।
इनायत यूं भी और यूँ भी, करम यूँ भी हूँ और यूँ भी ॥
रावरूपिण्डी ९-१-४५
“नये सालकी बधाई । मगर आप हे कि चिदठी ही नहीं लिखते।
भई ऐसा नहीं चाहिए। वकौल “জিমহ--.
एक तजल्लो एक तबस्सुम
एक निगाहे-बन्दानवाज
নজ यही कृ हमारे क्षु काफी ই।
रोहतक ९-२-४७
पत्रोत्तर देनेमे मुभ विलम्ब हृश्रा तो वत्तौर उच्महना पत्रमे रवि
सिद्दीकी केवल निम्न शेश्रर लिख भेजा 1]
५“ चिन्दगो क्यो हमातन गोहा हुई जाती है! ~~
कमी आया हूँ जो आयेगा দাদ उनका ?
रोहठक २४-३-४७
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খু!
“आपको रावलूपिण्डीके नूरपुरके मेलेके बारेमे बताया था ना ?
जहॉहसमाल कई नी गानेवाली जमा होती हें और चडे ठाठका मेला
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