शेर ओ सुखन भाग - ५ | Sher O Shukhan vol-V

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sher O Shukhan vol-V by पंडित लक्ष्मी चंद्रजी जैन - Pt. Lakshmi Chandraji Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

Add Infomation AboutLaxmichandra jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भ = ९ ~ मिल जाता है। पर तुम जानो, भ्रकान और 'ज्योर्त/ जैसे भाई लोगोंके बगैर क्या ताभका मज़ा ? वे ज्ौक़की महफिलें थी, यहाँ घंवा समझो । तुम्हीं कहो कि युद्धाय स्तनस-परस्तोका = बुतोकी हो अगर ऐसी ही खू तो क्‍यों कर हो ? ; रावलूपिण्डी १८-१२-४६ - ““त्रका उत्तर तो तुरन्त दोगे ना ? अरे वावा मुझे कहो ती में डालमियानगर भी आनेको तैयार हूँ। साइल का वह गेत्र याद दिका दू-- बदे-चभुदा वोह भा जायें, न जायें मुझको बुलवालें। इनायत यूं भी और यूँ भी, करम यूँ भी हूँ और यूँ भी ॥ रावरूपिण्डी ९-१-४५ “नये सालकी बधाई । मगर आप हे कि चिदठी ही नहीं लिखते। भई ऐसा नहीं चाहिए। वकौल “জিমহ--. एक तजल्लो एक तबस्सुम एक निगाहे-बन्दानवाज নজ यही कृ हमारे क्षु काफी ই। रोहतक ९-२-४७ पत्रोत्तर देनेमे मुभ विलम्ब हृश्रा तो वत्तौर उच्महना पत्रमे रवि सिद्दीकी केवल निम्न शेश्रर लिख भेजा 1] ५“ चिन्दगो क्यो हमातन गोहा हुई जाती है! ~~ कमी आया हूँ जो आयेगा দাদ उनका ? रोहठक २४-३-४७ {+ খু! “आपको रावलूपिण्डीके नूरपुरके मेलेके बारेमे बताया था ना ? जहॉहसमाल कई नी गानेवाली जमा होती हें और चडे ठाठका मेला




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now