भारत का वैधानिक एवं राष्ट्रीय विकास | Bharat Ka Vedhanik Avam Rashtriya Vikas

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Bharat Ka Vedhanik Avam Rashtriya Vikas by गुरुमुख निहाल सिंह - Gurumukh Nihal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रिरनवासिथों का आगमन ५ सूरत*, जहाँ उसे सम्राट जहाँगीर से ज़मीन और कुछ दूसरी सुविधाएं मिली थीं। सन्‌ १६१६ में मछलीपट्रम में एक फंक्ट्री स्थापित की गई। सन्‌ १६३३ में (महानदी डेल्टा में) एक फंक्ट्री हरिहरपुर में खोली गई । सन्‌ १६४० में सेण्ट जार्ज का किला मद्रास में बनाया गया । सन्‌ १६५० में कम्पनी को बंगाल के शासक से, उस प्रान्त में व्यापार करने, फंक्टी बनाने आदि का अधिकार मिला (जो वंगारू जीतने पर औरंगजेब के शाही प्रतिनिधिने बना रहने दिया) । फलत: शाही बन्दरगाह हुगली पर एक फंकक्‍्ट्री खोली गई लेकिन नये शाही प्रतिनिधि शाटस्ताखाँ के विरोध के कारण कम्पनी विशेष प्रगति नहों कर सकी । सन्‌ १६८६ में जॉब चारनाक को हुगली छोड़ना पड़ा और सुतनती, जहाँ वर्तमान कलकत्ता स्थित है, आना पड़ा । १६९० में वहाँ एक फंक्ट्री बनाई गई । १६६९ में राजा चाल्सं द्वितीय ने राजसत्ता के नाम से १० पौड वार्षिक लगान पर बम्बई द्वीप और बन्दगाह भेंट किये। इस प्रकार भारत के समुद्र-तट के महत्वपूर्ण स्थान सत्रहवी शताब्दी के अन्त तक कम्पनी को प्राप्त हो गए । इन स्थानों से कम्पनी अपना व्यापार ओर अपने दूसरे धधे सुविधा के साथ कर सकती थौ । (২) किसी कम्पनी को एकाधिपत्य देना, आजकल, नागरिकता के साधारण अधिकारों पर प्रव आघात समाजा सक्तां कितु वहु समय विभेषाधिकार ओर एकाधिपत्य का था और विदेश-व्यापार के क्षेत्र में तो यह बात विशेष रूप से थी । अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ ही ऐसी थीं कि अधिकांश जनता को गिने-चुने लोगों की कारपोरेशनों* का एकाधथिपत्य माननाप ड़ता। जैसा कि इल्बर्ट ने संकेत किया है, 'पूर्वो व्यापार को सफलता से चलाने के लिए यह आवश्यक था कि ऐसी समितियाँ बनाई जावे जो देशी राजाओं से समझौता और सौदा करने में, अपने नौकरों में अनुशासन बनाये रखने में और अपने यूरोपीय प्रतिद्रन्दरियों को उखाड़ फेंकने में समर्थ हों । स्वतन्त्र या अनधिकृत व्यापारों अपनी निर्बलता १. कम्पनी की पहली दो यात्राएँ भारत के लिए नहीं हुई वरन्‌ आचीन (सुमात्रा ), बान्तुम (जावा), और मौलकास के लिए हुईं। तीसरी यात्रा में बान्तुम के मार्ग में सूरत पर रुकने की व्यवस्था हुई (२४ अगस्त १६०८) । लेकिन शाही फरमान १६१३ में मिला और उस समय सूरत में स्थायी फंक्ट्री खोली गई । २. आंग्ल-रूसी व्यापार का एकाधिपत्य १५५३-५८ में रूसी कम्पनी को और भूमध्य सागर के व्यापार का एकाधिपत्य १५८१ में लीवेण्ट कम्पनी को दिया गया था।




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