जैन पूजांजलि | Jain Poojanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जंन पुजांजलि [५ देव दर्शन द्वारा भव्य जीव आत्मानुभूति प्राप्ति कर लेते हैं । सर्व विध्न बाधा नाशक है सर्व संकटों का हर्ता। ध्रजर, भ्रमर, अविकल, अविकारी श्रविनाशो सुख का कर्ता ॥ कर्माष्डक का चक्र मिटाता, मोक्ष लक्ष्मो का दाता। धर्मचक्र से सिद्धचक्र पाता जो श्रोंम नमः ध्याता॥ शोम शब्द में गर्भित पांचों परमेष्ठी निज गुण धारी । जो भी ध्याते बन जाते परमात्मा पुर ज्ञान धारी। जय, जय, जयति पंच परमेष्ठी जय, जय, रामोकार जिन मंत्र । भव बन्धन से छुटकारे का यही एक हे मंत्र स्वतन्त्र ॥ इसकी अनुपम महिमा का शब्दोमे क्से हो वणेन । जो अनुभव करते हैं वे ही पा लेते हैं मुक्ति गगन ॥ -५ रध :- अघ जल गंधाक्षत पुष्प सुचर ले दीप धुप फल श्रध्यं धरू । जिन गृह मे निन प्रतिमा सम्भुख सहस्रनाम को नमन करू ॥ ॐ हीं भगवत्‌ जिन, सहस्रनामेभ्यो अचम्‌ निवंपामीति स्वाहा । (स्वस्ति मङ्कलम्‌) मङ्खलमय भगवानु वौर प्रभु भगलमय गौतम गणधर मंगलमय श्री कुन्द कुन्द मुनि मङद्धल जन धर्म सुखकर मंगलमय भी ऋषभदेव प्रभु, मंगलमय श्री अजित জিলহা मंगलमय श्रौ सम्भव जिनवर, भगल श्रभिनन्दन परमेश मंगलमय श्रो सुमति जिनोत्तम मंगल पदूमनाथ सवेह मंगलमय सुपाहवं जिनस्वामौ मंगल चन्दा प्रथु चन्द्रश मंगलमय शचौ पुष्पदन्त प्रभु, मंगल शोतलनाथ स्‌रेश मंगममय श्रेयांसनाथ जिन मंगल वासु पृज्य पज्येक्




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