साहित्यका साथी | Sahityaka Sathi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि
२ साहित्यका साथी
हमारो बोधन-शक्ति या अनुभूति बहुत कम अुत्तेजित होती है। भिये
'सूचतात्मक-साहित्य! कह सकते हैं ।
(२) कुछ दूसरी पुस्तके असी मिर्गी जा हमारी जानकारी तो
बढातो हो हं, हमारी बोधन-शाक्ततिको भो निरन्तर जागरूक ओर सचेष्ट
बन।ओे रहती हैं । दर्शन, गणित ओर विज्ञानकी पुस्तकें असी ही होती हैं।
जिन्हें 'विवेचनात्मक-साहित्य'के अन्तर्गत माना जा सकता है, क्योंकि ,अिस
प्रकारके साहित्यके मूलमें हमारी विवेक-बृत्ति है, जो निरन्तर भिन्न वस्तुओं,
নিষলা জাহ धर्माकी विशिष्टता स्पष्ट करती रहती है ।
(३) जिन दोनोंके अतिरिक्त ओेक तीसरी श्रेणी भी है। यह
आवश्यक नहीं कि जिस शअ्रणोकी पुस्तकासे नऔी जानकारी ही प्राप्त हो, वे
हमारे जानी हुआ बातोंकों भी नये सिरेसे कह सकती हैं ओर फिर भी
हमें बारबार ऑन्हों जानी हुओ बातोंको पढ़नेके लिये आत्सुक बना सकती हैं।
ये पुस्तक हमें सुख-दुःखकी व्यक्तिगत संकीणेता ओर दुनियावी झगड़ोंसे
अूपर ले जाती दै, ओर सम्पूण मनुष्य-जातिके--भोर, ओर भी आगे बढ़कर
प्राणिमत्रके--डुःख-शोक, राग-विराग, जाह्द-जामोदका समझनेकी
सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं । वे पाठकके हृदयकों जिस प्रकार कोमल ओर
संवेदनशील बनाती हैं कि वह अपने कपुद्र स्वाथंकी भूलकर प्राणिमात्रके
दुःख-सुखको अपना समझने लगता हे--सारी दुनियाके साथ आत्मीयताका
अनुभव करने लगता है । पुराने शाखत्रकारोंने अिस प्रकारके मनोभावको
'स्रत्वस्थ' होना कहा है [ दे° §२९ ]। भिससे पाठकको भक प्रकारका
भसा आनेद मिलता है जे स्वार्थगत दुःख-सुखसे अूपरकी चौज हे । श्ाद्-
कारने भिसीको (लोकोत्तर आनद कहा है । कविता, नाटक, अुपन्यास, कहानी
आदिकी पुस्तके जिमी श्रणीकी हं! भक शब्दमं जिस तीसरी अश्रणोंके
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