गाँव की बात | Gaon Ki Baat

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Gaon Ki Baat by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाँव की याद ७ तुम्हीं ने सराचार मुझको सिखाया। तुम्दीं ने है माग धम्मे का बताया || तुम्हीं ने है पापों से घुझकों बचाया। तुम्हीं ने हैं मानस मुझको ब्ल्नाया।॥ मेरी प्यारी अ्रम्मा० || ५ | बहुत तुमने की मेरे साथ भज्ञाई। मेरे वास्ते बहुत मेहनत उठाई॥ प्रभु ग्रायु-घन मुझको देवे जो भाई | तुम्हारी में दिल्ल से करूं सेवकाई ॥ मेरी प्यारी श्रम्मा० || ६ || इस समय भी पाठशाला में बालक तथा बालिकाएँ यह कविता सीखती हैं, और मुझे इसके सुनने का बड़ा शोक है। राह ! तुम्हारो मेँ दिल से करू सेवकाई” यह पक्ति मुभे पने सारे जीवन पर नजर डालने को कहती है। में माता जी की क्या सेवा कर पाया ! जब में कुछ योग्य हुआ था, तब उनका देहान्त हो गया; हमेशा के लिए वियोग हो गया ! परन्तु उन्होंने লু दशन देकर यह समभा दिया कि मा का द्वी विराट स्वरूप जननी जन्मभूमिहै; देश की सवा, मावृभक्ति का दी दूसरा रूप है । अब गाँव में मेरी साता नहीं, भाई घहिन आदि भी नहीं, सगा सम्बन्धी नहीं, जाति बिरादरी नहीं। घर गिर-गिरा गया, वह भी नहीं । फिर गाँव में क्या लगाव ! मेरे कुछ शहरी मित्र ओर रिश्तेदार आदि यह पूछा करते द । उन्हें क्या जवाब




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