व्यवसाय का आदर्श | Vyavasay Ka Aadrash

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Vyavasay Ka Aadrash by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय आदश की आवश्यकता ০2০৮ लाभ आज हमारे जीवन का मार्यद्शक है | ** युग की पुकार हे कि हम अपने को बदलें और कुछ दिन 'घाटे का बिजनेस” करना सीखें | हमारे पत्रकार थह न सोचें कि आगामी तीन वर्षों में हमें अपनो कोठी बना लेनी है; वे सोचें कि इन वर्षों में हमें इस त्षेत्र में अपने विचार भर देने हें | प्रकाशक यह न सोचें कि हमें तीन वर्ष में अपना ग्रेस लगा लेना हे; वे सोचें कि हमें अपनी भाषा के इतने अभाव पूरे कर देने हैं | मल-मालिक यह न सोचें कि हमें एक नई मिल लगानी हैं; वे सोचें कि हमें “मिल-एरिया' को नया जीवन देना हे | - कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकरः पिछुले अध्याय में इस बात का विचार किया गया है कि हरेक श्रादमी को यथासंभव कोई व्यवसाय करना और स्वावलम्बी होना चाहिए, । बिना परिश्रम किए मुफ्त की रोटी खाना, श्रपने निर्वाह ॐ लिए दूसरों पर भार-स्वरूप बने रहना उचित नहीं हे । अच्छा, हमारे व्यवसाय का लद्षय या आदश्श क्या हो, अपने व्यवसाय में हम किन- किन बातों का ध्यान रखें । जीवन-यात्रा में दिशा निश्चित करने की श्रावश्यकता- व्यवसाय का आदश स्थिर करना हमारे लिए ऐसा ही ज़रूरी है, जेमा किसी यात्री के लिए अपनी दिशा निश्चित कर लेना। अगर हम यात्रा आरम्म करने से पहले अपना लक्ष्य या दिशा निश्चित नहीं करते तो हम कभी एक ओर चलेंगे, कभी दूसरी और; कभी दाई श्रोर, कभी बाई ओर, कभी आगे ओर कभी पीछे | इसका परिणाम यह होगा कि हम बहुत समय तक घूमते रहकर भो




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