पदमावत का शास्त्रीय भाष्य | Padmavat ka Shastriya Bhashye

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Padmavat ka Shastriya Bhashye  by गोविन्द त्रिगुणायत - Govind Trigunayat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्तुति खण्ड ७ [इस अवतरण मे परमात्मा की कतृत्व शक्ति का ही वर्णन किया गया है ।] उस परमात्मा ने अगर, कस्तूरी, खस, और भी मसेनी तथा चीनी कपूर बनाए हैं । उसने विषैले सर्पों की रचना की । इन सर्पों के विप के उतारने वाले मत्रो का भी चिघाता वही है । वह अमृत का सृष्टा भी है। इस अमृत को पाकर प्राणी शाश्वत जीवन को प्राप्त करते हैं । विष का बनाने वाला भी वही है । इस विप के खाने से जीव को मृत्यु के सुख मे जाना पडता है । उसने रस से भरी हुई ऊखे बनाई है । इनके विपरीत उसने बहुत सी कडवी वेले भी उत्पन्न की है । उसने मधु की सृष्टि की है । यह मघु मव्खियों के द्वारा एकत्रित किया जाता है । उसने भवर, पर्तिगे और पक्षी रचे है । लोमडी, चूहे और चीटियाँ भी उसी की बनाई हुई है । बिल बना कर रहने वाले सैकडो जीवों को भी उसी ने रचा है । राक्षस, भूत, प्रेत, दैत्य और दानव सभी उसके बनाए हुए हैं । इस प्रकार उस परमात्मा ने अठारह सहसख्र प्रकार के विविघ जीव बनाए हैं । उन सबकी भोग्य सामग्री भी उसी ने रची है । टिप्पणी--(१) यहाँ पर भी जायसी इस्लाम से प्रभावित है । इस्लाम मे अठारह सहस्र प्रकार के जीवो की कल्पना मान्य है । उनकी हदीस मे आया है 'हिशद हजार आलम' अर्थातु अठारह हजार योनि या ब्रह्माण्ड है । इसके विपरीत हिन्दू घर्मे मे ८४ लाख योनियाँ कल्पित की गई है । जायसी ने ८४ लाख की चर्चा न करके १८ सहस्र की चर्चा की है । यह घारणा स्पष्ट रूप से इस्लाम से ली गई है । (२) यहाँ पर जायसी का विश्वास पक्ष ही मुखरित हो गया है । वे भूत, प्रेत, राक्षस, देव, दानव इन सब मे विश्वास करते थे । (३) बेना--यह सस्क़ृत वीरण का अपभ्रश रूप है । इसका अर्थ 'खस' होता है । (४) चीना--यह कपूर की एक जाति है । (५) भौकस--यह सस्कृत पुककश का. अपग्रष्ट रूप है । इसका अर्थ दानव होता है । (६) तुलना करिए उसमान कृत चित्रावली पृष्ठ एक का निम्नलिखित वर्णन-- आदि बखानो. * गोसाई । कीन्हेसि मानुष दिहेसि” बडाई । कीन्हेसि अन्न, भुगुति तेहि पाई ॥ कीन्हेसि राजा भूजहि राजू । कीन्हेसि हस्ति घोर तेहि साजू ॥। कीन्हेंसि दरब गरब जेहि होई । कीन्हेसि लोभ, अघाई न कोई ॥। कीन्हेंसि जियन, सदा सब चहा । कीन्हेंसि मीचु, न कोई रहा ॥ कीन्हेसि सुख ओ कोटि अनदू । कीन्हेसि दुख चिन्ता और धदू3 ॥ कीन्हेंसि कोइ भिखा रि, कोइ घनी । कीन्हेंसि सपति विपत्ति पुनि घनी॥। झमवाल--* दिदिस; २ कोड; दे. ददू,।




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