बेला फूले आधीरात | Belaa Phuule Aadhiiraat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
73 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa
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देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड ।
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कौमुदी (प्राम-गोत) --प्रकाशित हो चुका था, जिसमे युक्तप्ान्तं के श्रनेकं गीत
प्रुत किये गये ये | श्री भवेरचन्द मेघाणी की ^रदियाली रातः श्रर द्रे
गुजराती लोक-गीत-संग्रह भी सृलाने की वस्तु नहीं ये । रायबहाद्र दिनेशचन्द्र
सेन के श्रादेश पर संग्रहीत तथा कलकत्ता-विश्व-विद्यालय द्वारा प्रकाशित पूवीं
बंगाल के कथा-गीत भी उल्लेखनीय थे |
पर सत्यार्थीजी विश्व विद्यालय सरीखी शिक्षण-संस्थाओ्रों से सहायता पाने
की ओर से उदासीन थे। वे खीन्धनाथ ठाकुर से मित्रे और अपने देशव्यापी
लोक-गीत-संग्रह के लिए उनका आशीवांद प्राप्त किया ।
अनेक वर्षो की জানাগহীহী না पश्चात् सत्यार्थाजी ने अपने जीवन का
ध्येय पा लिया है। उन्होंने श्रपनी लेखनी-द्वारा दिखा दिया कि उनमें एक-एक
भाषा श्रोर एक-एक बोली के लोक-गीतों के द्वारा भारत के हषं श्रौर विषाद को
सुनने की धुन है । निस्सन्देह उन्होने स्कारलेण्ड क देशभक्त फ्लेचर के कथन की
पुष्टि की है, जिसने सन् १७०६ में कहा था--'किसो भी जाति के लोक-गीत उसके
विधान से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं ।”
सत्यार्थीजी को चाहिए किवे भारत तथा भारत के समीपवर्ती देशोंके
लोक-गीतों फा रसास्वादन कराते रहै, जिन्ह उन्होने लोक-कविता की मौखिक
परम्परा से लिपिबद्ध किया है| गोतों की मूल भाषाओं के बोल नागरी लिपि
में सुरक्षित देखकर मेरा हृदय पुलकित हो उठता है। मेरे लिए इनका विशेष
वैज्ञानिक महत्व है । श्रनुवाद की शेलो में भो सत्यार्थीजी ने वैज्ञानिक और
कवि के दो विभिन्न दृष्टिकोण में संतुलन स्थापित किया है | श्रोर जहाँ तक
गीतों की सामाजिक और मनोवेज्ञानिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने का सम्बन्ध है,
सत्यार्थीजी आदि से अ्न्रन्त तक एक चिन्तनशील और अग्रगामी संस्कृति-
दूत के रूप में सदेव हमारी भाषाओं को रंगभूमि पर खड़े रहेंगे ।
कलकत्ता सुनीतिकुमार चाटुभ्यां
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