बेला फूले आधीरात | Belaa Phuule Aadhiiraat

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Belaa Phuule Aadhiiraat by डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaaदेवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

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देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड । ड ड कौमुदी (प्राम-गोत) --प्रकाशित हो चुका था, जिसमे युक्तप्ान्तं के श्रनेकं गीत प्रुत किये गये ये | श्री भवेरचन्द मेघाणी की ^रदियाली रातः श्रर द्रे गुजराती लोक-गीत-संग्रह भी सृलाने की वस्तु नहीं ये । रायबहाद्र दिनेशचन्द्र सेन के श्रादेश पर संग्रहीत तथा कलकत्ता-विश्व-विद्यालय द्वारा प्रकाशित पूवीं बंगाल के कथा-गीत भी उल्लेखनीय थे | पर सत्यार्थीजी विश्व विद्यालय सरीखी शिक्षण-संस्थाओ्रों से सहायता पाने की ओर से उदासीन थे। वे खीन्धनाथ ठाकुर से मित्रे और अपने देशव्यापी लोक-गीत-संग्रह के लिए उनका आशीवांद प्राप्त किया । अनेक वर्षो की জানাগহীহী না पश्चात्‌ सत्यार्थाजी ने अपने जीवन का ध्येय पा लिया है। उन्होंने श्रपनी लेखनी-द्वारा दिखा दिया कि उनमें एक-एक भाषा श्रोर एक-एक बोली के लोक-गीतों के द्वारा भारत के हषं श्रौर विषाद को सुनने की धुन है । निस्सन्देह उन्होने स्कारलेण्ड क देशभक्त फ्लेचर के कथन की पुष्टि की है, जिसने सन्‌ १७०६ में कहा था--'किसो भी जाति के लोक-गीत उसके विधान से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं ।” सत्यार्थीजी को चाहिए किवे भारत तथा भारत के समीपवर्ती देशोंके लोक-गीतों फा रसास्वादन कराते रहै, जिन्ह उन्होने लोक-कविता की मौखिक परम्परा से लिपिबद्ध किया है| गोतों की मूल भाषाओं के बोल नागरी लिपि में सुरक्षित देखकर मेरा हृदय पुलकित हो उठता है। मेरे लिए इनका विशेष वैज्ञानिक महत्व है । श्रनुवाद की शेलो में भो सत्यार्थीजी ने वैज्ञानिक और कवि के दो विभिन्न दृष्टिकोण में संतुलन स्थापित किया है | श्रोर जहाँ तक गीतों की सामाजिक और मनोवेज्ञानिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने का सम्बन्ध है, सत्यार्थीजी आदि से अ्न्‍रन्त तक एक चिन्तनशील और अग्रगामी संस्कृति- दूत के रूप में सदेव हमारी भाषाओं को रंगभूमि पर खड़े रहेंगे । कलकत्ता सुनीतिकुमार चाटुभ्यां




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