बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन | Bundeli Ka Bhashashastreey Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
भाँति प्राचीन युग में क्षेत्रीय बोली-रूपों को स्पष्ट करने वाली सामग्री के
संकलन का प्रयास नहीं हुआ था। यही कारण है कि साहित्य-समृद्ध पालि
भाषा को विकसित करने का गौरव किस क्षेत्रीय भाषा का प्रप्त हैं, इस
सम्बन्ध में विद्वानों में .पर्याप्त मतभेद है। पैशाच्री एवं महाराष्ट्री प्राक्ृतों
की आधारभूत जनपदीय बोलियाँ कौन-सी हैं, यह अब भी सुनिश्चित नहीं ।
इसमें सन्देहःतहीं कि वर्तमान बुन्देली का ध्वन्यात्मक एवं व्याकरणिक ऐक्य
हिन्दी की पश्चिमी बोलियों से है, अर्थात् ब्रज एवं खडी बोली से उसका
तैकटय ( ४रगि190707 ) प्रमाण-सिद्ध है, परन्तु प्राचीन आर्य भाषा संस्कृत
से लेकर अद्यावधि बुन्देछखण्ड की प्रदेशीय भाषाएँ कौन-कौन सी रही हैं
इस सम्बन्ध में अधिक प्रामाणिकता के साथ भाषाविज्ञानेतर (1071-18 01/1०)
कारण ही प्रस्तुत किए जा सक्ते हैँ । |
कालक्रमानुसार भारतीय आयं भाषाओं का विकास तीन युगो में
विभाजित करके देखा गया है :-- द
1) १ ५० वि ई० पु० हेड हार डोज 3५ ৯ ৯৯ प० ও ভুত त५ | यह् युग बुद्ध
के पूर्व का है। जबकि साहित्यिक भाषाएँ छान्दस एवं
संस्कृत थीं ।
वी) ५०० ई० पु १००० ६० । इस युग की साहित्यिक
भाषाएं-पाली, क्षेत्रीय प्राकृर्ते एवं अपभ्रंशें थीं, साथ
ही, शिष्ट-जन-परग्रहीत राष्ट्रभाषा संस्कृत का प्रसार
भी व्यापक था ।
17) १००० ई० से अद्यावधि। इसे भाषा शास्त्रयों ने भाषा
युग' की संज्ञा दी है ।
वस्तुतः प्रागैतिहासिक वैदिक बोलियां ही व्यक्ति-देश-काल-भेद के भनुसार
विकसित होकर आज आधुनिक आये भाषाओं के रूप में प्राप्त हैं ।
भाषा की दृष्टि से जिसे हम संस्कृत-युग कहते हैं, भारतीय इतिहास में
उसे प्रागैतिहासिक युग कहा गया है। उस समय बुन्देलखण्ड की स्थिति क्या
.. थी, इसकी जानकारी पुराणों से होती है। वेवस्वत मनु की वंश परम्परा में
महाराज ययाति के पाँच पुत्र हुए-यदु, तुर्वसु, द्ुह्म् , अनु और पुरु। साम्राज्य.
विभाजन मेँ यदु को चमेण्यवती, वेत्रवती तथा शुक्तिमती कौ धाराओं से अभि-
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