चिद्विलास | Chidwilaas

Chidwilaas by संपूर्णानन्द - Sampurnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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র उनसे निवेदन किया कि मेरा दर्शनके सम्बन्धमे एकर स्वतन्त्र पुस्तक लिखनेका विचार है | उन्होंने कृपा करके मुझको इस प्रयासके लिए प्रोत्साहित किया इसकी छः व हो गये | अब तक उस विचारको कास्यमे परिणत करनेका अवसर नहीं मिलता थां। ब्रिटिश सरकारकी कृपासे अब समय मिला है | पिछले तीन वर्षों दो वर्ष ओर चार महीने कारावासमें बीते है ! अभी ओर दिन इसी प्रकार जार्यगे । भारतकी राजनीतिक परिस्थिति पर इससे अच्छी ओर क्‍या टिप्पणी हो सकती है कि दर्शनके सम्बन्धमें अध्ययन और मनन करने तथा पुस्तक लिखनेका अवकाश बन्‍्दीण्हमें ही मिलता है। दर्शनका विषय पुराना है, समस्‍्याएँ पुरानी हैं, परन्तु आज इन समस्याओंने नया रूप धारण किया है। एक महासमरके घाव सूखने न पाये थे कि दूसरा छिड़ गया | युद्धको मीषणता इतनी बढ़ गयी है कि यदि ऐसे ही एकाध संग्राम और हुए तो सम्यताका नाम मिट जायगा ओर जर्हौ जनशङ्कल नगर वसे है वरहो इवापदाकीर्णं जङ्गल देख पड़ेंगे । मनुष्यने प्रकृतिपर विजय पायी परन्तु धम्मबुद्धिको विकसित करना मूल বাছা | परिणाम यह हुआ कि वह अपने ज्ञानको अपने संहारका साधन बना बैठा है | विज्ञानकी उन्नतिने यह सम्मव बना दिया है कि प्रत्येक मनुष्य सुखसे रह सके परन्तु जितना देन्य, दारिद्रथ ओर दुःख आज है उतना स्थात्‌ ही कभी रहा होगा ; यन्त्रोके द्वारा थोडे संमयमें बहुत काम दो जाता है परन्तु किसीके पास अवकाश देख नहीं पड़ता और जिसके पास अवकाश है वह. उसका उपयोग नहीं जानता : मनध्य एक दसरेके जिंतने निकट आज हो सकते हैं उतना कमी पहले सम्भव नहीं था परन्तु जितना कलह, द्वेष, पार्थक्य, शोषण आज हो रहा है उतना पहले




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