शाहजहाँ | Shahjahan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५६ ` नाटथयकारने औरंगजेबका जो चित्र खींचा हे, वह एक बड़े भारी पुरुषाथका चित्र है। नाट'यकारने बहुत ही सावधानी और आन्तरिक सहानभूतिसे इस चरित्रको परिस्फुट किया है और यह बात॑ श्रत्येक रसज्ञको स्वीकार करनी होगी कि उनका यह प्रयत्न सवेतो भावसे सफल हुआ है । ओरंगजबके तीक्ष्णवुद्धि, दूरदरशिता कायतत्परता, विपत्तिमें धैय, आत्मदमनका सामथ्यं आदि गुण उस- के ग्रति खयं ही श्रद्धाको आकर्षित कर छेते हैं । ओरंगजेबके महान्‌ चरित्रके साथ तुलना करनेसे उसके भाइयोंका चरित्र बिल्कुल ही तुच्छं जान पड़ता है । उसकी राज -तिक बुद्धिके साथः प्रतिद्रन्द्िता करनेमे वे ब्चोके समान सवेथा असमथ ये, यह्‌ बात नाटकमे स्प- ्टतासे दिखखई देती है । अन्यान्य पात्रोके समान ओरगजेबके चरित्रके दोषोंको भी नाट यकारने जहो! तक बना ह्‌, अन्तरारमें ही रक्छा है । किन्तु दोष इतने गुरुतर दे कि सेकडां ष्टा ओंसे भी उनकी कालिमा नहीं धुर सकती । यदहं बात नहीं है कि ओरंग- जेब केवल शशटठके प्रति शाठ-य करता था › नही, बह अपनी कायं- सिद्धिके लिए आबश्यकता पड़ ने पर जो शठ नहीं है उसके भी साथ शठता या घूतता करता था । यह्‌ बात नाटकरमे भी प्रकाशित हृद है ।. हानाराके उकसनैसे मुरादने जब उसक। बन्दी करनेका षड्यन्त्र रचा था, उसके बहुत पहलेसे उसने मुरादकों “सम्राट्‌? कहकर और अपने आपको 'मक्का? जानेवाछा फकीर बतछाकर उसको प्र- तारित कियाथा। बह निष्ठर था, इसका आभास भो नाटकमें मौजूद है । उसने दारा और सिपरको एक बहुत ही दुबछे ` पते हंडियाँ निकले हुए हाथीकी पीठ पर मेले कपड़ोंकी पोशाक पहनवा- कर दिल्लीके चारों तरफ घुमायां था | यह बड़ीं ही भीषण निष्ठरता थी । बनियर लिखत। है कि दांराको मृत्युका दंण्ड देनेके समय ओ-




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