कुंडा कुंडा प्रभृता संग्रह | Kunda - Kunda Prabhrita Sangrah

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Kunda - Kunda Prabhrita Sangrah by पी. टी. कैलाश चन्द्र जैन - P. T. Kelash Chandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च ग्राश्रत-सं्रह को जैन त क्तानके सम्बन्धे कोद शद्वा ऊत्पन्न हुई। एक दिन ध्यान करते समय उन्होंने शुद्ध मनन वचन का््रते श्रीमन्दरस्वामीको नमस्कार किया । उन्हे सुनाई दिया फि समवसरणमें विराजमान श्रीमदर स्वामीने उन्हे आशीर्वाद दिया 'सद्दर्म ब्ृद्धिरस्तुः । समवसरण्मे उपस्थित श्रत्ता्रोको वडा ्रचरज हुआ कि इन्होंने किसको आशिर्वाद ठिया है क्यों कि यहा उन्हें नमस्कार करने वाला त्तो कोई दिखाई नही देता । श्रीमदर स्वामीने बतलाया फि उन्हेंने भारत वर्षके कुर्दकुन्द मुनिको आशिर्वाद दिया है। दो चारण मुनि जो पूर्व जन्ममें कुन्दकुन्दके मित्र थे, कुम्दकुन्दफ़ो श्रीमन्दरस्वामीके समवसरणमे ले गये । जव वे उन्हें आकाश मार्गसे ले जारहे थे तो कन्दकुन्दकी मयूर पिन्छिका गिर गई । तब कुन्दकुन्दने गृद्के पखेसि काम चलाया | कुन्दकुन्द वहा एफ सप्ताह रहे श्र उनकी शंकाएं दर हो गईं । लौटते समय वह अपने साथ एक पुस्तक लाये थे किन्तु वह समुड्में गिर गई । बहुतसे तोीथकी यात्रा करते हुए वे भारत वर्ष लौट आये और उन्होंने धर्मोपदेश” देना प्राश्म्म किया और सात सो मी पुरुषोनि उनसे दीक्षा ली । कुट समय पश्चात्‌ गिरनार पर्त पर उनका श्वेताग्बरेसे विवाद हौ गया । तव ब्राह्मी दैवी ने यह स्वीकार किया कि दिगम्बर निग्र्थ मार्ग ही सच्चा है । श्रन्तम श्रपने शिष्य उमास्वातिको श्रप्यायं पद्‌ प्रदान करके वे स्वर्गवासी) हए ॥ पक कथा डा० चक्वर्तने पञ्चास्तिकायकी श्पनी प्रस्ताचनामे दी हे-- ठा० चक्रवत्तकि लेसानुसार कुन्दकुन्दाचायंकी यह कथा पुण्याखवकथा नामक म्रन्थमें णाख दानके फलके उदाहरणके रूपमें दी गई हे । कथा इस प्रकार है-- भारत खण्डके दक्षिण देशमें 'पिडथनाहू नामका प्रदेश दै । इस प्रदेशके श्रन्तंगत कुरुमरई नामके रामम करमण्डु नामका धनिक वेश्य रहता था । उसकी पत्नीका नाम श्रीमती था | उनके यहा एक ग्वाला रहता था जो उनके पशु चराया करता था । डस ग्वालेफा नाम सथिवरन था । एक दिन जब बह अपने पशुअको एक जगलमें लेजा रद्दा था, उसने बढ़े आ्राश्चर्यसे देखा कि सारा जगल दावागरिनसे जल कर भस्म होगया है फ़िन्तु मध्यके कुछ वच्च हरे भर ₹। उसे उसका कारण जाननेकी बढ़ी उत्सुकता हुई। वह उस स्थानपर गया तो उसे ज्ञात हुआ कि यद्ध फिसी मुनिराजका निवास स्थान है और वहाँ एक पेटीमें ्रागस अन्थ रखे है। वह पढ़ा लिसा नही था। उसने सोचा कि इस आगस अन्थऊे कारग ही यद्द स्थान श्रायपे बच गया है। श्रत वह्‌ उन्दे




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