प्रत्युत्तर | Pratyuttar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
313
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चान्दमल जैन - Chandamal Jain
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सुन्दरलाल - Sundarlal
भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।
26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।
मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३)
दूसरों की झूठी निन््दा-मात्र करना ही सीखा हे । बस, इसी से तो
बिना प्रमाण के ही उन्हंने यह लिख सारा है। कदाचित
अ्रमचारी जी को कीई झूठा स्वप्न आगया होगा, या कोई काला
देव स्वयं आ कर, उत्तकी गपाष्टक ऑफिस मे इस बात को
नोट कर गया द्येगा । इसी से तो एेसा अनगेल प्रलाप अप कर
बेटे है|
अच्छा अश्रमचारी जी | आपके भ्रम का हमर ही निराकरण
किये देते हैं, कि--“भगवान् महावीर के सम्बन्ध में; तथा मोक्ष
मांग के बारे में, कोई भी स्थानकवरासी खाधु, एक-दूसरे के
चिर, कथन तो कभी नदीं करते ¢
फिर, अमचारी जी ! “भगवान् महावीर का अदर्श जीवन”
इसमे तो कहीं भी, ओर किसी भी अरुचि-पूर्ण बात का उल्लेख
नहीं किया गया है । पक्तपात-हीन, एक साधारण-से-साधारण
ओर विद्वान-से-विद्वान, फोई भी पुरुष, उसे देख-भालकर, कहीं
भी अरुचि का उल्लेख उसमे नहीं पायेगा । ऐसा कौन मूर्ख होगा,
जो प्रन्थ लिखने को बेठेगा; ओर उसमें अरुचिकर वातों को
लिख बेंठेगा | अरुचि-पू्चंक लिखने का, जो जिक्र समीक्ता मे
भ्रमचारी जी ने किया है, वह् उनकी वुद्धि की सरासर अजीझुता
है । सच तो यद्द है; कि “कल्पित-कथा-समीक्षा” को लिखकर ही,
अ्रवेचारी जी ने अपने সুজ নব कलंक की अमिट कालिमा पोत
लीद)
अच्छा तो यही होता, कि भ्रमचारी जी उस अरुचि-पूर्ण
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