उलतावंसी-साहित्य | Ultavansi-Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खनुक्रम
भूमिका १---डॉ० विजयेन्द्र स्नातक कि
२--प० कृष्णशड्ूर घुक्ल
उन्मुलीकरण
प्रस्तावना
प्रयुक्त लाघव रूपो की सूची
০ उलटबाँसी का स्वरूप ४० १-१३
विपय प्रवेश, साधनात्मक श्रभिव्यक्ति की समस्या; उलटवासी के समानार्थक
शब्द, 'उलटवाँसी' के समकक्ष शब्द, आलोचको की दृष्टि मे “उलटरववॉसी' छब्द की
व्युत्पत्ति 1 उलटवाँसी शैली का स्वरूप । (ग्र) प्रयोक्ताओ के कथन-साक्ष्य, (भा) भ्रालोचकों
के कथन-साक्ष्य, शैली के (अर) अनिवाये तत्त्व (आ) सामान्य विशेषताएँ |
उलटरवाँसी-रचना के प्रयोजनं (१) विचार-भाव गाग्भीर्य (२) गोपन की प्रद्त्ति
(श्र) ज्ञान रूप दुलंभ तत्त्व की पवित्रता, (आ) पात्रत्व की कसौटी, (इ) साधना प्रक्रिया
को सर्वगस्य न होने देना, (३) ध्यानाकर्षंा अथवा मनोरजन, (४) पाण्डित्य अथवा
शान-गुरुता प्रदर्शन, (५) लोक-मार्ग का व्यक्तिक्रम, (६) वुद्धिदृत्ति को प्रोत्साहन, (६)
दो ती-प्रयोग मे परःपरा-निर्वाह् ।
उलट्वासी पदो का वर्गीकरण (क) शैली की दृष्टि से वर्गीकरण-१ - विरोध पर
ग्राधित वर्गीकरण (श्र) विधि-विरोध, (ग्रा) यकृति विरोध, (इ) धर्म विरोध । २--
साह्य प्र श्राधित वर्गीकरण- ३- गूढार्थं प्रतीत के प्राघार पर वर्गीकरण, (ख) विषया-
नुसार वर्गीकरण -१--उपदेश प्रधान, २--विरवित-श्रनु रक्ति-भावना प्रधान, ३---विश्वास
प्रधान। ४--साधना विषयक, ५--परीक्षा विषयक, ६--माया विपयक, ७--सिद्धि
श्रौर उसके फल से सम्बन्धित--- (ग्र) विचार-प्रधान उलटवॉसी-पद, (आ) भाव-प्रधान
उलटबॉसी-पद, (ग) प्रयोजनानुसार वर्गीकरण-१-- साधनात्मक अनुभूति की श्रभिव्यक्ति,
२ - गुद्य प्रद्धत्ति प्रधान, ३--कौतूहत सृष्टि तथा विस्मय-हृद्धि, ४--पाण्डित्य प्रदर्शन ।
ভম্ছ की समग्रता की दृष्टि से--पुर्णंपद उलटवॉसी, अशपद उलटवबाँसी ।
द्वितीय अध्याय पु० ५४-७६
৬ ¢
उलठबाँसी डाली कै पूवं परम्परा
प्रवेश (क) वेदिक युग-ऋग्वेद, भ्रथवेवेद तथा उपनिषदो मे शली का पूर्वं रूप,
(ख) घामिक तथा मध्यकालीन सस्छृत युग मे सैली प्रयोग का भ्रमाव श्रीर उसके कारण
(ग) परवर्ती सस्छृत-साहित्य, (घ) पाचि-प्राङृत युग, (ड) तान्त्रिक प्रभाव ।
तृतीय श्रध्याय पृ० ७७---२०४
ब्रपम्न दा, प्राकृतामास हिन्दी-साहित्य में उलटवाँसी
चोरासी सिद्धों की परम्परा सिद्धों की कुछ विशेष साधनाएँ-१---प्रज्ञोपाय अथवा
युगनद प्रक्रिया; २--महामुद्रा साधना, ३--बोधि चित्त समुत्पाद; ४--चित्त शुद्धि,
४--पिण्ड रहस्य, ६---महासुख | सिद्धों की उलटवाँसियो के प्रयोग और प्रयोक्ता--
१--कुक्की रीपाद, २--ग्रुण्डरीपाद, ३--भुसुकपाद, ४--काह्नपाद, ५--हंष्णाचार्य
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