आत्मतत्व - विचार [भाग - ३] | Atamtatv Vichar [Bhag - ३]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নাছ जेनाचाय श्री विजयरक्ष्मण सूरीश्वरजी की यह कृति वस्तुतत कर्म-ग्रन्थो की छुन्नी हे और समस्त प्राचीन-अवाचीन कर्म-दशन- सम्बन्धी ग्रन्थो का सार है । यह ग्रन्थ न केवछ जिज्ञासु वर्ग को कर्म-दशन का परिचय प्राप्त करान में समर्थ हे वल्कि विद्वत्‌- वर्ग की शकाओं का समाधान करने तथा जञास्त्रीय और परम्परा- गत मान्यताओं को स्पष्ट करने में मी समर्थ हे । जेनाचाये जितने वड़े विद्वान हैं, उतने ही योगो मी | आपने सूरिमंत्र के पाँचों पीठ सिद्ध किये हैं प्रथम ओर द्वितीय पीठ आपने रोहिडा ( राजस्थान ) से सिद्ध किया, तीसरा और चौथा पीठ अँधेरी ( वम्बई ) में सिद्ध किया और पॉचवोँ पीठ महाराष्ट्र के निपाणी के चातु्मोस में आपने सिद्ध किया। इसके अतिरिक्त मी आपने कई सावना की हे । आचार्यश्री की व्याख्यान-शैली के सम्बन्ध मे तो कुछ कहना ही नहीं है| प्रस्तुत अन्थ ही इस वात का प्रमाण है कि, वे क्विप्ट-से-क्लिप्ट विषय को कितने रोचक ढग से प्रस्तुत करतेमे समथे हैं । मकरसक्रान्ति, १०१६ वि० 1 ज्ञानचन्द्र दफ्तरी वादी, व चिंचोली, मलाड, वम्बई ६४ € द )




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