विवेकानन्द साहित्य जन्मशती संस्करण [तृतीय खण्ड] | Vivekanand Sahitya Janmshati Sanskaran [Khand-iii]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“हरेक अपने क्षेत्र में महान् है
सांख्य मत के अनुसार प्रकृति--सत्त्व, रज तथा तम--इन तीन शक्तियों
से निर्मित है। भौतिक जगत् में इन तीन शक्तियों की अभिव्यवित साम्यावस्था,
क्रियाशीकता तथा जड़ता के रूप में दिखायी पड़ती है। तम की अभिव्यक्ति
अन्धकार अथवा कर्मशून्यता के रूप में होती है, रज की कर्मशीरूता अर्थात् आक-
षेण एवं विकर्षण के रूप में, और सत्त्व इत दोनों की साम्यावस्था है।
प्रत्येक व्यवित में ये तीन शक्तियाँ होती हैं। कभी कभी तमोगुण प्रवल होता
है, तव हम सुस्त हो जाते हैं, हिल-डुल तक नहीं सकते और कुछ विशिष्ट भावनाओं
अथवा जड़ता से ही आबद्ध होकर निष्क्रिय हो जाते हैं। फिर कभी कभी कमंशीलता
का प्रावल्य होता है; ओौर कभी कभी इन दोनों के सामंजस्य सन्व की प्रवक्ता होती
है। फिर, भिन्न भिन्न मनुष्यों मे इन गुणों मे से कोई एक सवसे प्रवर होता है।
एक मनुष्य में निष्करियता, सुस्ती ओर आलस्य के गुण प्रवर रहते ह; दुसरे में क्रिया-
शीलता, उत्साह एवं शक्ति के, और तीसरे में हम शान्ति, मृदुता एवं माधुयं का भाव
देखते है, जो पूर्वोक्त दोनों गुणों अर्थात, सक्रियता एवं निष्क्रियता का सामंजस्य
होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि में--पशुओं, वृक्षों और मनुष्यों में--हमें इन
विभिन्न शक्तियों का, न्यूनाधिक मात्रा मे, वैरिष्टयपूणे अभिव्यक्ति दिखायी
देती है।
कमेयोग का सम्बन्ध मुख्यतः इन तीन शक्तियो से है । उनके स्वरूप के विषय
मे तथा उनका उपयोग कंसे करना चाहिए, यह् वतलाकर कर्मयोग हमे अपना कायं
अच्छी तरह से करने की शिक्षा देता है। मानव-समाज एक श्रेणीवद्ध संगठन है ।
हम सभी जानते हैँ कि सदाचार तथा कर्तव्य किसे कहते है; परन्तु फिर भी हम
देखते हैं कि भिन्न भिन्न देशों में सदाचार के सम्बन्ध में अछग अलग धारणाएँ हैं।
एक देश में जो वात सदाचार मानी जाती है, दूसरे देश में वही नितान्त दुराचार
समझी जा सकती है। उदाहरणाये, एक देश में चचेरे भाई-वहिन आपस में विवाह
कर सकते हैं, परन्तु दूसरे देश में यही वात अत्यन्त अनैतिक मानी जाती है। किसी
देश में रोग अपनी साली से विवाह कर सकते हैं, परन्तु यही वात दूसरे >
अनैतिक समुझी जाती है! फिर कहीं कहीं लोग एक ही वार विवः
हैं और कहीं कहीं कई वार, इत्यादि इत्यादि । इसी प्रकार, खन
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