अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र | International Economics

International Economics  by एच. एस. अग्रवाल - H. S. Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कब्तर्राष्ट्रीय अयेशास्त्र का सर्य, पषति एवं महत्व | 5 2. यन्तरषटिय मर्थमास्व कौ শ্র্ততি বৈর06 ০1073008019), 3. अन्तर्षटरीय भर्थगान्व्र का अन्य विपयो (विज्ञानों) से मन्य (१621० गं [1८८ 78100781 8০০0020168 ছি 01০ 54৮1666) 1, अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्थ को विधय-सामप्ररे + 18.27.11 18০02017105) अन्तर्राष्ट्रीय अर्धंशासर्त्र की वियय-सामग्री में एक देश से दुसरे देश के मध्य किये जाने वाले वस्तुओं एवं सेदाओं के आयात-निर्यात कौ सम्मिलित किया जाता है। अक्षेप्र थे, अन्तर्राष्ट्रीय मर्थणास्प कौ विपरय-मामग्री का वर्णन निम्न अकार किया जा सक्ता है: (1) अत्तर्राष्ट्रीप व्यापार के सिद्धान्त--अ्तर्राष्ट्रीय कर्यशाहतर के अस्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विभिन्न सिद्धान्तो का अध्यवत किया जाता है। इन सिद्धान्तों में वणिकरवादी एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त, एड्स प्मिय का प्रतिष्ठित अन्तर्राप्ट्रीय ध्यापार का छिद़ान्त, तुलवात्मक लगगत प्रिद्धास्त, अवसर सायत सिद्धान्त, हैश्शर ओहलिन सिद्धान्त, त्योनततीफ विरोधा- भाष, रटाल्पर-मैयुलसत भ्रमेय, साधन मूल्य-समानीकरण सिद्धान्त भादि मुख्य हैं । (1) अस्तर्राव्ट्रीय व्यापार के मौद्रिक पहलू--अन्‍्तर्राष्ट्रीय अथंशास्त्र दी विपय-सामप्री के अन्तर्गत अस्तर्राप्ट्रीय व्यापार के मौंद्रिक पहलुओं का अध्ययन भी किया जाता है। इससे व्यापार की शर्ते, विदेशी व्यापार गृणक, विदेशी विनिमय एवं विनिमय दर निर्धारण के सिद्धान्त, विनिमय नियम्त॒भ, भुगतान सस्तुलन, मूल्य स्थिरता एवं विनिमय स्थिरता एबं अन्तर्राष्ट्रीय स्वर्ण मान आदि का अध्ययन मुख्य है । (01) बाणिश्यिक तौतियाँ--अस्तर्राप्ट्रीय व्यापार के सम्बन्ध में जो नीति अपनाई जाती है उसे वाणिज्यिक नीति बहते हैं। इसके अन्‍्तगंत्र विभिन्न वाणिज्यिक नीतियों का अध्ययन किया পাবা পম स्वतस्थ ध्यापार एवं सरश्षण, सरक्षण की विधियाँ, आयात अम्यश, एकाधिकारी सप्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय संघ (/०1०90168 शाएँ वि/क्षातवणाओं (7123), प्रशु्क नीति, राशि- पतन, साम्राज्य भधिमान [17एथ्वा४ शर्धक्षक्षाए८), राजकीय घ्यापार (8906 1780098), हिपक्षीय एवं बहुपक्षीय॑ व्यापार (978/070॥ 270 ?4०)1141691 7730०), कस्टय यूनियन कर নি্রানা (75015 9৫ 09501011012), গাহি । ( अन्तर्राष्ट्रीय भाविक सहयोग --अस्तर्राप्ट्रीय अर्थशास्त्र में हम उन सभी संस्थाओं को अध्यपत करते हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित कर्ती है तथां उरते सम्बन्धित समस्याओं का हल कौरने के लिए स्थापितको शयी) इमे निम्ने मस्य: मत्तर्रष्टीए मुदा कोप (17, दिशव बैंड! (४४००४ 890: ७ 18720), अन्तर्राष्ट्रीय तरतता की समस्या (270ए॑८ण 0111107য009001170010119), অবতান্ত (00106৫ [501975 09010006006 ০0 36 আপু 70शै०्ागव्णा। थ ऐप), धृरोपीय साझा बाजार [सपरणू.८आा 00फ्शाणा 39120), एशिया तथा प्रशान्ते सागर दत के देषो का व्यापार सम्मेलन (1व८ (0८6 ० 4512 010 [00100 86075), হহায়াহ साझा बाजार (46 (छाना णित), एव प्रौ. कौर्म श्म आलारीड्रीए अर्धंशाःस्त्र आाद़ि 1 (५) विदेशों व्यापार की संरघना एवं दिशा-इगके अन्तर्गत हम रिगी देश की वाल (समय) के कम मे व्यापारिक प्रवृत्तियों का अध्ययन करते हैं । (9 विदेशी व्यापार मे विशिधता एवं आधुनिक प्रवुत्तियाँ, व्यापार एवं भुगतान सत्युलन, आयात- নানি, নিঘাল বরন, হক আমার प्रतिस्वापन, अवमूल्यन एवं अधिमुल्यत, दिदेशी पूंजी और आाधिक লিবলে আহি লী सम्बन्धित समस्त धारणाओं का अध्ययन भी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की दिपय-शामप्री में सेश्मि- लित होता है। प्राय, सरकार की अनुदान एवं करारोपर्ण नीतियाँ आयात दया निर्यात को प्रमादित फरदी है | जहाँ सरकार की अन्य मीतियो वा प्रत्यक्षत. देश बे नागरिकों पर ही प्रभाव होता है. वाधिम्यिक मीतियाँ यानी आयात व निर्यात मे सम्दद्ध नौतियाँ न वैउस देश बे भुगतान-सस्तुलन को अपितु किसी सीमा तक सम्बद्ध देशों वे नागरिकों को मी मम्रातित कसी हैं। भस्य, रर




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