नयी तालीम वॉल - 21 वर्ष - 21 अंक -1 | Nai Talim vol-12 Varsh-12 Ank-1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
509
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्पतान हैं। उन पर याहखारों का परसायों का, परदे
शियों का अथवा देशवातियों झा भी फोई बोज्च नहीं
है, भऔर न उन पर सिसा का काई जोर और প্রন
अप चल्नेवाठा दे ।
यदि इस प्राथमिक मदत्य के अयन्त आवश्यक
और जनियाय काय के लिए इतने वर्षों के बाद मी
सारे देश में कोई सुसगठित और मुनियाजित प्रयत्न
जे रम्म नहीं क्रिया गया तो देश वे क्रोद्धो लोगों
में नयी स्वतजता के लिए कोई सास उत्साह, विवास
और थ्रद्धा नहीं वाग पायगा | परिणाम यह होगा कि
सब निर्माण और परिफास के सारे काम ऊपर उपर
चलते रेणे, गहराई तक नहीं पहुँच पायेंगे और देश
के छोक जावन का मूछ धार को प्ररिद और प्रभावित
भी नहीं कर सफेंगे अतएय व्यापक ओर पिशिप्
प्रकार का लोक शिक्षा आज या हमाश विरोषं
आवश्यकता है ।
दम्र नम्नता पूर्सक यह स्व कार फर लेना होगा कि
आज अपने इस देश में शिक्षा फे जो भा प्रयोग दो
रहे हैं, व आम लोगों को न तो छू पाते हें
ओर न उद হিল ही पाते हैं। शंगों को
अपगी ब्रक्यिदा जहरतें भा पूरा करने में इन
प्रय्टों से कोई মল नहीं भि> रहा है। देश व
करोड़ों लोग आज भीसप प्रकार का হাহা ই নন
रह रहे हैं | टाह নাবী শিয়ানিতথ। रह है न
লা | তন पास शिक्षा और सस्कार का सही
पिचार पहुंचाने म भा हम अब तक असमथ ही रहे।
इमारी अर तऊ फ्री सारा विष?ताओं और निरशाओं
के मूल में हमारे समात्त तथा शासन की यह असम
ता पड़ा है ।
इम शिक्षा किसे फद्द
इष प्रम मे पद> देने यह साच ऊयाजक
उपनेसदरमं भं हनि] फ़िसे कह ! आज इस
देश क प्रायमिक से उच्चतम पाल्यो, महा
पिय ल्य ओर् पिश्वपिचाल्यो में प्रा पढ़ के लोगों
को जिस प्रकार का शिक्षा रा जा रहा इ, स्पण दो
उसम यद सामष्य पहीं दे हि बह आज क इमारे
शिक्षित मधरा माहवो का स्वव भारत का
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मुबोग्प,सम्थ,और उद्उद्ध नागरिक बा सके । अपनी
स्वव यत[ के इस सोलइवें वर्ष में मी आज हम अपने
देश में हर तरद के गुयगा,लाचारी,मुँबताजी,बेकररी
और कमजोरी का पोषण करने वाली शिक्षा হী ই
रददे हैं।
आज की इस शिक्षा को इसी तरह चला कर अगर
हम आशा करें कि इसे प्राप्त करके प्रिकले हुए लोग
देश फी और मानवता की उत्तम से उत्तम सेवा करने
লাউ यनेंगे तो हमारे नम्न तिचार से वह आज्ञा कमी
फ्ठपता द्वोगी द्वी यहीं हम यह स्पष्ट समझ लेना
होगा, और ठुरव इस यात का पौसला करना होगा
कि यहाँ शिक्ष , शिक्षित व्यक्ति वो पेपल नौकरी
करने लायक बनाने का लक्ष्य रखकर चलेगा तो
फक्रिसी भी दया में बह हमारे राष्ट्रज वन की आच की
मृल्भूत आउश्ययताओं को पूरा नहीं कर सपगा।
एफ नौरुरी का हा विचार शिक्षा व क्षेत्र में प्रबल बना
रद्दा तो वह उस क्षेत्र को और शिक्षित व्यवित को भा
सटा दूषित और दुर्छत हा बनाता रहेगा।
आज्ञ के इस मय स दर्भ में दम जरा पछ मुझ
সহ देखा होगा और हजारों वए पहले हमारे খু
ज्ञ 1 पिशान क प्राप्ति फं लिए जपन सागनजो
ल्य रगरतये, उन स्ध्योगा पुन খাল মাজা
होगा और दश म६र जगह उभके अउुरूप शिक्षा
दीक्षा वी ब्ययस्था जमाया होगी। इस देश म बहुत्त
पुराने समय से विद्या को मुक्तित का साधन और
अमरता फा वाहन माना गया है। 'साविद्या था
जिम॒ुक्त 4 और विच्या'मृतमशचुत' इन दा अ्सिदा
जार ग्राचा] बचनों मे जा मद्दान जादर्श আহিল ই
उसे स्तत अपने ध्यान में रुपकर देश की मया
पढ़ा फी समूची शिउा दीक्षा का व्यवस्थित सपाजव
क्रक द्वा हम पूर देश भ नये जायनन्मूस्यों से आग
भरोत नयं] मान्ता तौर नया पागरिफता के सुबग
दर्शन र सर्गे । इखङा अथ बृह् नहं किमानमः
इस युगम स्मे आधुनिक कषान {क्तात फास मानस
दूर बने হহলা ই जयया उत्ते आ मसा क्सन
कसा प्रकार की सकार्णता या सकोच स জাল
लना है।
[ नयो म छीम
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