तीर्थकर चरित्र | Tirthkar Charitra

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Tirthkar Charitra  by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ० ऋषभदेवजी--ह्वण्युटर का उपदेण ७ |) रिति শপ শট এসপি শিস আস খে थे--१ स्वयवृद्ध > मभिन्नमति 3 चतम भीर ४ महामति 1 इन चारो मे न्वण्वद्र विशञेण वुद्धिमान्‌ मम्यगृदुग्टि ओर्‌ गजाका दि्वचितफः था। एक वा स्वयवद्र फो विचार हग कि-- “मेरा स्वामी फार-भोगोमे इव र्द्राते । उन्दियो के विपय श्र जन ने राजा को अपने अधिकार मे कर लिया है। इस प्रकार स्वामी को मनृप्य-जन्म व्यर्थं गँवाले देख कर भी में नही बोल और चुपवाप देखा करूँ, नो यह मेर्रः कत्तंव्य-विमुखता होगी । मेरा कत्तंव्य है कि मे महाराज को काम-भोगो से मोड कर धर्म के मार्ग पर लगाऊँ।” इस प्रकार सोच कर यथावसर स्वयबुद्ध ने नम्नतापूर्वक महाराज महावल से निवेदन फ्रिया-- “ महाराज | यह ससार समुद्र के समान है। जिस प्रकार नदियों के जज से समुद्र तृप्त नही होता और समुद्र के जल से वडवानल (समुद्र मे रही हुई अग्नि) तृप्त नही होता, जीवो की मृत्यु से यमराज (काल) ऑर काएठ-भक्षण से अग्नि तृप्त नही होती, वैसे ही यह मोही आत्मा, विपय-भोग से तृप्त नही हो सकती । आकाक्षा बढती ही रहती है। कितु जिस प्रकार नदी के किनारे की छया, दुजेन, विप और वियधर प्राणी की अत्यन्त निकटता--विशेष सेवन, दु खदायक होता है, उसी प्रकार विपयो की आसवित भी अत्यन्त दु खदायक होती है। कामदेव का सेवन तत्काल तो सुख देता है, कितु परिणाम मे विरस एव दुखद होता है और खुजाले हुए दाद की खुजली के समान वासना बढाता ही रहता है । यह कामदेव नरक का दूत, व्यसन का सागर और विपत्ति रूपी लता का अकुर है। पाप-रूपी कटु फलदायक वृक्ष का सिचन करने वाली जलधारा भी काम-भोग ही है । कामदेव (मोह) रूपी मदिरा में मदमत्त हुआ जीव, सदाचार के मार्ग से हट कर दुराचार के खड्डें में गिर जाता है और भवश्रमण के जजाल में पड जाता है । जिस प्रकार धर मे घुसा हुआ चूहा, घर मे अनेक खड्डें खोद कर बिल बना देता है, उसी प्रकार जिस आत्मा मे कामदेव प्रवेश करता है, उसमे धर्म अर्थ और भोक्ष को खोद कर खा जाता है ।” “ स्त्रियाँ, दशेन, स्पर्ण और उपभोग से अत्यन्त व्यामोह उत्पन्न करती । काम रूपी शिकारी की जाल है ।' হা ” वे मित्र भी हिंतकारी नहीं होते, जो खाने-पीने एवं विलास के साथी है । वे मन्त्री मपने स्वामी का भावो हित नही देख कर स्वार्थ ही देखते हैं । ऐसे छोग अधम है-- जो स्वार्थरत, रूम्पट और नीच हैं और लुभावनी নাবী करते हुए स्वामी को स्त्रियों के मोह मे डुवाने के लिए वैसी कथा, ग्रीत, नृत्य एव कामोह्दीपक बचनों से मोहित कर




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