हमारे पूर्वज हमारे हितैषी | Humare Purvaj Humare Hitaeshi

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Humare Purvaj Humare Hitaeshi by सुबोध कुमार जैन - Subodh Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और दा पुत्रियां बाबू चन्द्र कुमार जी के हुए। इस समय पुत्र-पुत्रियों सहित उक्त बाबू साहब बहुत सुख से रहने लगे। बाबू देवकुमार जी का विद्या संस्कार कराया तथा कर्ण छेदन बहुत उत्सवयुक्त किया। इतना ही कर पाये थे कि कालबली की वक्रक्रीडा ने अपना प्रवेश आरंभ किंया। बा० चन्द्र कुमार जी अस्वस्थ रहने लगे, यहां तक किं उनको पूर्ण विश्वास हो गया कि हम अब ज्यादा नहीं जीयेंगे और अपने बाद बाल बच्चों के इन्तजाम कं वास्ते बहुत चिंतित रहने लगे। धर्म कौ भी सुध आई ओर बहुत त्रत सहित रहने लगे। कोर्ट ऑफ वार्ड का उनका इरादा हो गया, मगर जीते जी सरकार को कोर्ट देना पसन्द न था आखिर में मरण के एक दो दिन पहले निश्चित हो गया कि कोटं ओंफ वाड का इन्तजाम ठीक हो गया है तो बाबू जी की आत्मा को शांति मिली। बीमार रहकर सं० 1943 के करीब सारे कूटुम्ब को बिलखते हुए शोक सागर मेँ डुबोकर स्वर्गवासी हो गए। चारो बच्चों का लालन पालन माता कं निकट कोर्ट कौ निगरानी मेँ बडी हिफाजत ओर आराम कं साथ होने लगा। यद्यपि संसार मे सब प्राणी काल व्यतीत करते हैं, मगर कोई महात्मा ऐसे हो जाते हैँ, जो कालपूर्ण कर बिदा होने पर भी अपना यश संसार मेँ छोड जाते ह, ओर उक्त यशरूपी हस्ति पर सवार होकर सदैव जीते रहते है, इन्हीं को यश कौ माला ओर ओर जीव करते हैँ ओर अनुकरण कर अपना कर्मं करते है। बाबू देव कुमार जी भी ऐसे ही एक महात्मा थे। जहां आपके लगभग 10 वर्ष की अवस्था में पिता का वियोग हो गया तथा सिवाय माता के और कोई भी बड़ा शिखर नहीं रहा, यह समय कैसा कठिन है। विषम चोरों को चोरी करने का पूरा मौका आ लगा, तब भी बाबू साहब जैसे महात्मा को कौन भुला सकता ६। उनको कोई बुरी आदत नहीं लगी बल्कि ज्ञान-चरित्र की दिन प्रतिदिन नग्करकौ ही होती रही। यहां आरा नगरस्थ जिला स्कूल में बाबू साहब इंगलिश नधा संस्कृत आदि विषय पढने लगे। मैट्रीकुलेशन की परीक्षा में बैठे और पास हो गए। अब तक पढ़ना बहुत तेजी के साथ होता रहा, मगर इसके बाद स्वास्थ कुछ बिगड़ गया, इसलिए पढ़ने मे कुछ मन्दता आ पडी, पर अनुभव दिन दूना बढ़ता हीं रहा। 17 वर्ष की अवस्था में बाबू साहब का विवाह, शुभ मुहूर्त सं० 1950 के करीब में बाबू लक्ष्मी चन्द्र जी 'रईस' की सुपुत्री अनूपमाला जी के साथ बड़े समारोह से हुआ। पूर्व पुण्य से आपको गुणवती रूपवती पत्लीश्री अनूपमाला बड़ी बललभा हो गई। यहां की पढ़ाई पूरी होने पर एफ० ए० के लिए बाबू साहब बांकीपुर गये। वहां कॉलेज में विद्याध्ययन शुरू किया और बराबर ~)




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