हम और हमारा स्वास्थ्य | Ham Aur Hamaaraa Svaasthy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33.59 MB
कुल पष्ठ :
459
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वास्थ्य और रोग की संकल्पना चित्र 1.3-स्वास्थ्य और रोग का स्पेक्ट्म के साधन या उक्त परिवतंन को लक्ष्य करने के जो साधन उपलब्ध होते हैं ते इतने अपर्याप्त होते हैं कि स्वास्थ्य में कमी को किसी रोग विद्येप की संजा दे पाना असंभव होता है। विशिष्ट रोगों का निदान आमतौर से तभी हो पाता है जब वें मनुप्य के आंतरिक वातावरण में ऐसे महत्वपूर्ण परिवतन उत्पन्न करते हैं जिनसे पीड़ा ज्वर दुर्बलता इत्यादि लक्षण प्रकट होते हैं । ऐसी दा में स्वा- स्थ्य का स्खलन वहुत व्यापक होता है और रोग के कारण पड़ने वाले लारीरिक मानसिक आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव उस व्यक्ति और उसके परिवार पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाते हैं । जो भी हो यह एक दिलचस्प तथ्य हे कि बहुत से मामलों में राग के द्वारा उतततन परिवर्तन लक्षण प्रकट करने के योग्य प्रभावपूर्ण नहीं होते । इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि इस प्रकार लक्षणह्ीन 5५७८ 1101८21 अथवा अनि- स्वत्प रोग का सरलता से निदान नहीं हो पाता । आयुरविज्ञान एए६०1८31 5ट1टए1065 और विशेष रूप से निरोधक आयुर्विज्ञान एए८५४८५11९४९ एट्ताटाए८ के क्षेत्र में आधुनिक प्रगतियों के फलस्वरूप किसी प्रकार का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने के बहुत पहले ही स्वास्थ्य से स्खलन के रूप में अधिकाधिक रोगों का निदान किया जा सकता है । स्वास्थ्य और रोग यह बात आसानी से समभ में आ सकती है कि किसी मजबूत और टिकाऊ इंमा रत के ढहने के पू्र या तो उसके ढांचे का काफी कमजोर हो जाना जरूरी है या फिर उस पर गहरा आघात जसे कि बम के विस्फोट का आघात लगना जरूरी है। जो बात इमारत पर सही उतरती है वही स्वास्थ्य पर भी सही उतरती है । एक कमजोर इमारत चाहे खड़ी हो मगर सुरक्षित नहीं है । यह कोई जरूरी नहीं कि कोई व्यक्ति जो प्रकट रूप से रोगी नहीं है स्वस्थ ही हो । स्वास्थ्य और रोग के बीच कोई सटीक विभाजक रेखा नहीं है वल्कि वे एक दूसरे से ऐसे अप्रत्यक्ष रूप से मिथित होते हैं जैसे प्रकाया के स्पेक्ट्रम के रंग । मानव-जीवन का स्पेक्ट्रम चित्र 1.3 के रूप में दर्शाया जा सकता है । अत आमतौर पर यह जानना कठिन होता हैं कि कब स्वास्थ्य की अवस्था समाप्त होती है और रोग को अवस्था प्रारंभ होती है । ज्यादातर खासतौर से चिरकारी रोगों में दुरू-गरू में किसी भी परिवतंन का पता नहीं चल पाता जिससे उसकी रोकथाम करना संभव नहीं होता । इस स्पेक्ट्रम का अंतिम प्रतिकूल छोर मृत्य है जो स्पष्ट है । कितु इसका दूसरा छोर जो कि पूर्ण स्वास्थ्य का है इतना सुनिश्चित नहीं होता । जीवन जीने के लिए होता है । स्वास्थ्य के बिना जीवन न सिफ॑ बहुत हद तक अपनी उपयोगिता से वरन् अपने सुख और आनंद से भी वंचित रह जाता है । यह पुस्तक स्वास्थ्य की समस्याओं में रुचि उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करेगी और हमारे पाठकों के स्वास्थ्य के सपने को साकार करने में सहायता देगी । प्रकृति की चुनौती को स्वीकार करके हमें उत्तरोत्तर अधिक स्वस्थ बनकर विजय प्राप्त करनी होगी ।
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