नानक वाणी | Nanak Vani

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Nanak Vani  by जयराम मिश्र - Jairam Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका श्री गुरु नानक देव का भारतीय घर्म-संस्थापको एवं समाज-सुधारको मे गौरवपुणं स्थान है । मध्ययुगके संत कवियो मे उनकी विशिष्ट भ्रौर निराली धमं-परम्परा है। वह्‌ उम धमं के संस्थापक हैँ जिसके श्रान्तरिकं पक्ष मे विवेक, वैराग्य, भक्ति, कान, योग, तितिक्षा भ्रौर ग्रात्म-समपंण की भावना निहित है रौर बाह्य पक्ष मे सदाचार, संयम, एकता, श्नातृभाव श्रादि पिरोए हए है । गुरु नानक मध्ययुग कै मौलिक चिन्तक, क्रान्तिकारी सुधारक, श्रद्वितीय युग-निर्माता, महान्‌ देशभक्त, दीन-दखियो के परम हितेषी तथा दूरदर्शी राष्टर-निरमाति धे । हिन्दी मे इनकी वारी का प्रध्ययन न किया जाना खटकनै की बात टै । हिन्दी के कुछ उदभट विद्वानों ने गुरु नानक के सम्बन्ध मे यह विचार प्रकट किया है कि 'श्रन्तमे कबीरदास की निगुंग-उपासना का प्रचार उन्होने पंजाब मे आरम्भ किया।” मेरी समक में उनको यह धारणा समीचोन नही | वास्तव में गुर नानक स्वतः कबीरदास की हो भाँति मौलिक चितक थे । उन्होने कथीरदास का निगुण उपासना का प्रचार नही किमा, बल्कि श्रपने मौलिक विचारो का प्रचार और प्रसार किया । एकाघ हिन्दी के विद्वानों ने ग्रुरु तेगबहादुर जी के पदोको गुर नानक का पद बतलाया है। उसका कारग यह है कि गुरु तेगवहादुर ही नही, वा-क सिक्‍्खों के सभी गुरुओ की वाणी के भ्रन्त में नानक! शब्द झ्ाया है। “्रां ग्रुरु ग्रंथ साहिब” के सिक्‍व गुरुओ के सभी पदो के ग्रन्त में 'नानकर शब्द के थ्रा जाते से इस श्रम का होना स्वाभाविक है । टम भ्रम के निवरणाथं वाणी के प्रारम्भ में 'महला १?, 'महला २१, 'महला ३९, 'महला ४, 'महला ५? तथा 'महला ६, दिया गया है। 'महला ११ का अभिप्राय सिकखों के आदि ग्रुर नानक से है । इसी प्रकार 'महला २ का तात्पयं गुरु अंगद देव से, 'महला ३? का गुरु अम रदास से, 'महला ४ का ग्रुरु रामदास से, 'महला ४ का गुह अज्जुन देव से तथा 'महला €? का ग्रभिप्राय गुरु तेगबहादुर से है । वास्तव मे वाणियों की रचना करते समय सभी ग्रुरुओ ने प्रपने को नानक! ग्रुर मे मिला दिया था। इसी से वे वाणी के ग्रन्त में नानक का ही नाम देते थे । “श्री गुर ग्रंथ सा्ब' १४३० पृष्ठो का वृहत्‌काय ग्रन्थ है। उसका संकलन सिक्‍खों के पांचवे' गुरु श्रज्भुत देव ने सन्‌ १६०४ ई० में किया था । गुर भज्जुन देव ने प्रथम पॉच सिक्‍्ख- गुरुओं की वाणी के अतिरिक्त बहुत से प्रभावशाली भक्तों की वाणियाँ भी संग्रहीत की । हाँ, उनके संग्रह में एक बात अवश्य है किवे वाणियाँ सिक्‍्ख-गुरुओ को विचारधारा के अनुरूप है । जयदेव, नामदेव, त्रिलोचन, परमानन्द, सदना, बेनी, रामानन्द, धन्ना, पीपा, मेन; कबीर, रवदास अ्रधवा रविदास श्रथवा रेदास, मौरावाई, फरीद, भीखन, सूरदास ( मदनमोहन } की भी वाशियाँ है। भक्तो के अ्रतिरिक्त कुछ भट्टों की भी रचनाएं है । भट्टो के नामो की संख्या में विद्वानों में मतभेद है | ट्रम्प ने १५ भट्टो के नामो की सूची दी है! । गोकुलचन्द नारज्ज ने ट्रम्प के नामो की दी हुई तालिका की पुनराजृत्त की हैर । मोत्न सिह ने ववल १२ नाम गिनाए १, झादि अंथ, ट्रम्प, भूमिका, पृष्ठ १२० २. ट्ान्सफारमेंशन झाफ़, सिक्खिज्म, गोकुलचन्द नारडू, पृष्ठ २२०




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