श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (सातवां भाग) | Shree Jain Siddhant Bol Sangrah (Bhaag - 7)

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Shree Jain Siddhant Bol Sangrah (Bhaag - 7) by अगरचन्द भैरोदान सेठिया - Agarchand Bhairodan Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{*५] বীজ নু पष्ठ योल লও पृष्ठ पाँच पद নী কই? ९८ | ९७० पेंतीस वाणी के ९८३ नमरकार सूत्रम सिद्ध अतिशय ৬? स पहले अरिदृत को ९९४ (३६) प्रमाद साधा १० २३१ क्यो नमस्मारकषिया ५९४ प्रवचन सम्रह ठयालीस १५१ गया १ ९८ | ९८३ अश्नोत्तरधन्तीस् ९८ प्रक्नतियाँ 4४९ २७१ ९९४ (३) निर्मन्थ प्रवचन सहिमा गाथा ३ १५५ ५६८ यत्तीस छस्वाप्याय २८ प ५६६ বন্দী ভুল २१ ९८३ (६) परमावधि ज्ञाती ५९० बयालीस भादार दोप १४५ क्या चरम शरीरी ५७३ बहुभुत पूजा अभ्ययन ९९१ नामकर्म की वयालीस | १००४ प्रायश्रित्त क पचास ইবিই? ६-३ (३० अ० ११) को ९९४ (१४) परिषद का बत्तीसगराथा। ५१ त्याग गाथा १९ १८१ | १००८८ यायन्‌ अनाचीं ९५३ पुग्यप्रद्टतियाँ बयालीस १५० साधु के 7 ^ ९८३ (३१) पुष्पनक्षत्र डी ९६४ अद्षच का बत्तीस धेष्ठा का वर्णन क्या রা ४ তি ९९४ स्वय शील ऊत शाखो मे भी ११०६ (३) 3 ५९४ (२०, पुजाप्रशसाका 7 ८०५ ध ९५५९ जाक्षीलिपि के माटवा- त्याग गाथा (०. ९९० क्षर छियालीस २९४ १८७ परथ्वीकाय (ररवाद्ग) के चालीस भेद. १४५ भें ९८३ (२७) प्ृथ्बीकाय के १८०३ भागे उनचास पफ जीव क्या १८ पाप प्रत्यास्यान के २६७ का सेचन सते ट ¶ १८० | ९९० (६६) भ्रमरृतति ९९० पेंतालीस आगम २६० गाथा ४ १८५




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