स्वतन्त्रता का सोपान | Svantrata Ka Sopan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बी. सीतलप्रसाद - B. Seetalprasaad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ 1 स्वतंत्रता का सोपानं
स्वतः ही छट जाता है । स्वतंत्रता मेरी हो निज नगरी है। उसी में
विश्राम करता हूं ।
५. सहज सुखों का घर
स्वतन्त्रता आत्मा का स्वतन्त्र हक है। स्वतन्त्रता आत्मा का
निज स्वभाव हैं; स्वतन्त्रता से पूर्णपने आत्मा की शक्तियाँ अपना-२
कांम करती है। स्वतन्त्रता बंधनों के त्याग से होती है। बंधनों को
काटना उचित है। बन्धनों में अपने को पटकने वाला ही यही आत्मा
है। जब यह राग-द्वेष, मोह से मैला होता है यह अपने में कर्मबन्ध कर
लेता है । जब यह वीतराग भावसे शुद्ध होता है तब यह कमंबन्ध
काट कर स्वतम्त्र हो जाता है। वीतराग भाव में रहने का उपाय पर
से असहयोग व आत्मा के साथ पूणे सहयोग हैं । एकदम अपने आत्मा
“ की सम्पत्ति के सिवाय पर सम्पत्ति से पूर्ण वेराग्य की आवश्यकता है।
तथा निज ज्ञान दशेन सुख वोर्यादि सम्पत्ति से पूणं अनुराग को आव-
इयकता है । जो जिसका प्रेमी होत है वहु उसको अवश्य प्राप्त कर
लेता है ।
«» स्वभाव का प्रेम करना ही सम्यग्दश्शंन है । स्वभाव का जानना
सम्यग्ज्ञान है। स्वभाव में लीन होना सम्यकचारित्र है। स्वभाव में
रमण की आवश्यकता है। स्वभाव में रमण का उपाय स्व-स्वभाव में
ही स्व-स्वभाव रूप देखना है । जब हेय कौ अपेक्षा से स्व-पदाथंको
देखा जाता है तो यही भासता है कि उस पदार्थ में पर वस्तु का संयोग
न कभी था न है, न कभो होगा । वह सदा ही अबन्ध-अस्पृश्य है, एक
रूप है, अभेद है, निश्चल हे, पर संयोग से रहिन है। पर से शून्य व
निज सम्पत्ति से अशून्य है । मन व इन्द्रियों से अगोचर है । परन्तु अपने
अतीन्द्रिय स्वभाव से अनुभवं करने याग्य है। सहज ज्ञान दहन का
सागर है । सहज वीयं तथा सहज सुखो का घर है । इसमे ज्ञाता-ज्ञेय,
घ्याता-ध्येय, कर्ता, कम॑, क्रिया, गुण, गुणी, एक-अनेक, नित्य-अनित्य,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...