सिद्धि के सोपान | Siddhi Ke Sopan  

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Siddhi Ke Sopan   by आचार्य श्री नेमीचन्द्र - Acharya Shri Nemichandraराजचन्द्र - Rajchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'पिद्धि के सोपान॑ के यूल पद्म श्रपुवे प्रवसर अपुवं अवसर एवो क्यारे आवहे ? क्यारे थइशुं बाह्यान्तर नि्रन्थ जो, सवं सम्बन्धन्‌ं बंधन तीक्ष्ण छेदीने লিলহহ क्व॒ महापुरुषने पंय जो १॥ स्वेभावयी ओौदासीन्यं वृत्ति करी, मात्र देह ते संयम-हेतु होय जो; अन्य कारणे अन्य कष्चु कल्पे नहि › देहे पण किचित्‌ मूर्च्छा नव जोय जो ।२॥। दर्शनमोह व्यतीत थई उपज्यो बोध जे , देहसिन्न केवल चेतन्यनुं ज्ञान जो , एथी प्रक्षीण चारिन्रमोह विलोकीए , चत्त एवं शुद्धस्वरूपनुं ध्याव जो ॥३॥। आत्मस्थिरता प्रण॒ संक्षिप्त योगनी › मुर्यपणे' तो वर्ते देह पर्यन्त जो, घोर परिषह के उपसगे भये फरी, आदी शके नहि ते स्थिरतानो जन्त जो १४५ संयमना हेतुथी আম-সললনা? स्वरूपलक्षे জিল-লাজা জাদীন जो; ९३




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