मधुकण | Madhukan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मधुकण  - Madhukan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवतीचरण वर्मा - Bhagwati Charan Verma

Add Infomation AboutBhagwati Charan Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हक हैं ) वोने का उत्तरदायित्व उन्हीं पर है ओर इस लिए अपने पाप की सुरुता पर ध्यान देते ही उनके हृदय काँप उठते हैं। इन गुरुजनों की चद्धावस्था ने इनके कोश को संकु- चित बना दिया है। यदि सद्दानुभूति के साथ ये गुरुअन आधुनिक छायावाद की कविता को पढ़ें, तो उनमें विरोध की यह भावना एक दस मिंट जाय । पर दुर्भाग्यवश परिवतंन-प्रिय न होने के कारण 'और साथ ही अपनी विद्वत्ता तथा साहित्य में अपने उँचे स्थान होने के कारण उन लोगों में छायावाद की कथिता की चोर उपेक्षा को भावना प्रवल हो गयी है । यद्द याद रखना चाहिये कि विद्वान तथा साहित्य-निर्माता और अच्छा कवि तथा अच्छा समालोचक होने में भेद होता है। यह ध्यान में रखना पड़ेगा कि युग का प्रभाव देश के साहित्य पर बहुत अधिक पड़ता है और देश का नव-युवक समुदाय ही देश के साहित्य का निर्माता माना जाता है। जिस तेज़ी के साथ देश की विचारधारा बदल रही है उसको देखते हुए यह कहना पड़ेगा कि इस श्रेणी के लोग व्यथे में वादविवाद उठा कर उद्धत नवयुवकों के आक्षेपपूणणं अत्युत्तरों से सर्साहत होने का कष्ट उठा रहें हैं। इस श्रेणी में अधिकांश साहित्य के महारथी हैं, उनके प्रति अश्रद्धा प्रकट करना एक बड़े पाप का भागी होना है। में इन गुरुअनों से मस्तक नमाकर कहूँगा कि जो बात ठीक है उसे सानने में सक्लोच न करना चाहिये, और कस से कम यदि वे इस वात को ठीक नहीं मानते तो उन्हें मोन ही रहना चाहिये । हिन्दी कविता में प्रथम बार भाव-परिवतन देश की राजसैतिक हलचल के समय देखा गया है, और इसलिए यह कहा जा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now