बहरूपि गांधी | Behroopi Gandhi

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Behroopi Gandhi by पं. जवाहरलाल नेहरु - Pt. Jawaharlal Nehru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेरिप्टर म हनदास गाधी ने भ्रठारह वर्ष की प्रायु में मैट्रिक पास किया | इसके बाद वहू कानून पढ़ने के लिए लन्दत गए । कट्टर नेम-धरम और छुप्राछूत मानने वाले भोढ़ बनिया की जाति में वह पहले थे जो विलायत गए । लन्दन के इनर टेम्पल कानूनी संस्था में भरती होने के बाद गांधी जान पाए कि कालून को परीक्षा पास करता बहुत श्रासान है । पाठय-पुस्तकों के नोट दो महीये में पढ़कर बहुत से लोग परीक्षाएँ पास कर लेते थे । पर नोट पढ़ने का यह आसान तरीका गांधी को नहीं भाया । परीक्षक को धोखा देना उन्हें पसन्द नहीं था। उन्होंने मूल पाठय-पुस्तकें पढ़ने का निएचय किया और काफी पैसा खर्च करके कानून की पुस्तकों को खरीदा । उन्हें कॉमन लॉ पर मोटी-मोटी किताबें पढ़नी पड़ीं। उन्होंने लेटित भाषा सीखी और रोमत कानून की पुस्तकें मूल लेटित में पढ़ी । उस समय के बैरिस्टर 'डिनर बैरिस्टर' कहे जाते थे क्योंकि उन्हें लगभग तीन वर्षों में बारह टर्म रखने होते थे। इसका मतलब था कि उन्हें कम से कम बहत्तर भोजों में शामिल होना पड़ता था । इस खर्चीले भोजों का व्यय छात्रों को काना पडता था । गांधी ऐसे खान-पान के आदी नहीं थे और उतकी समझ में नहीं आता था कि दावतों में शामिल होने शोर शराब पीने से कोई आदमी किस प्रकार अच्छा बेरिस्टर बन जाता है । फिर भी, उन्हें दावत में शरीक होना पड़ता था । वे न तो मांस खाते थे और ने शराब ही पीते थे | इसलिए कानून के कई छात्र उन्हें टेबुल पर अपने साथ बैठाने को उत्सुक रहते थे ताकि उन्हें गांधी के हिस्से की भी शराब पीने को मिल सके । मगर इन सबके बावजूद गांधी का स्वाभाविक संकोच और भेप दूर न हो सकी | उनको बड़ी घबड़ाहट थी कि अ्रदालत में खड़े होकर कैसे बहस करें । एक अंग्रेज वकील ने उन्हें बहुत उत्साहित किया श्रौर कहा कि कोद भी वकील मेहनत ग्रौर ईमानदारी से खाने-पीने लायक कमा सकता है। “अगर तुम किसी मामले के तथ्यों को श्रच्छी तरह पकड़ लो तो कानून की बारीकियों में जाने की ज्यादा जरूरत नहीं, क्योंकि तीन-चौथाई कानून तो तथ्य होता है ।” उन्होंने गांधी को इतिहास भर सामान्य ज्ञात की पुस्तक पढ़ने की सलाह दी । गांधी ने उतकी राय मान ली |




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