चरित्र निर्माण | Charitra Nirman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( হ 9 रखती ह । यही प्रज्ञा है जो परिस्थितियों की दासता स्वीकार न करके मनुष्य का चरित्र बनाती है। जिसकी इद्धि स्वाभाधिक सत्तया, विषय-बासनाओं को वश सें नहीं कर सकेगी वद्द कभी संभ्यरित्र नहीं बन सकता । यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि हम बुद्धि ब्ल पर हीं अवृत्तियों का संयस फर सकते हैं। जीवन के সুক্ষ বদল হী অন্তত মী অন प्रदृसियों की आंधी आती है तो संयप्र की व्यवस्था है. केवल बुद्धि के मस्तूज्ञ ही हमें पार लगाते हैं । विषयों को मैंने आंधी कहा है, इनमें आंधी का वेग है और इनको काबू करना बदा कठिन है--इसीलिये यह कहा है। अन्यथा इनमें आंधी की त्णिकता नहीं ই। प्रवुत्तियों के रूप में ये विषय सदा मनुष्य में रहते हैं। उसी तरह जैसे पचन के रूप में आधे. श्राकाश में रहती है। चही पवन जब कुछ आकाशी तत्वों के विशेष सम्मित्नन के कारण तीज हो जाता है तो आंधी बन जाता है। हमारी प्रशृत्तियां भी जब भावनाओं के विशेष मिश्रण में तीघर हो जाती हैं तो तीघ्र वासनायें बन जादी हैं। उन्तका पूर्ण दूसन नहीं हो सकता । बुद्धि द्वारा उन्हें कल्याणकारी विशाशं 1 प्रचृत्त हो किया जा नसकता है: उनका संयम किया जा सकता दैं। संयम शब्द जितना साधारण हो गया है, उसे क्रियात्मिक सफदोता देना उतना ही. कठिन काम हे | एस कठियाई शंयम की कठिनाइयां के कारण हैं ।, सबसे सुख्य कारण यह है कि জিদ प्रदृत्तियोँ को हस संयतत करना चाहते हैं दे हमारी स्वाभाविक पधृत्तियां हैं । उनका जन्म हमारे जन्म के साथ हुआ है। दम उनमें अनायास प्रवृत्त होते हैं। इसलिए वे बहुत सरदा हैं। इसके अतिरिक्त उनका अस्तित्व हमारे लिये आवश्यक भी है। उस प्रवृत्तियों के बिना हम कोडे भी चेष्टा नहीं कर सकते । इसके कि, . इस निष्कर्म हो जायंगे। निष्कम ही नहीं इस असुरक्षित सी हो `




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