जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन | Jain Kaviyo Ke Brajbhasha Prabandhkavyon Ka Adhyayna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
397
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० जन कवियों के त्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
जेन धमं से अलग करके देखना धामिक भौर साहित्यिक दोनों दृष्टियों से
अनुचित होगा ।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जेन साहित्य ब्राह्मण साहित्य के
समानान्तर अपना रूप संवारता आ रहा है । यह ठीक है कि जैन और
बौद्ध धमं क्रा साहित्य मलतः जनरुचि ओर जनभावना को ध्यान मै रखकर
अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हुआ था, इसलिए उसकी भाषा अधिकांशतः
जनभाषा ही रही है, किन्तु जेनों की संस्कृत की रचनाएँ भी तो हैं जो
: उनकी संस्क्ृत-क्षेत्रीय क्षमताओं को प्रमाणित करती हैं । अनेक साधु और
श्रावक जिस प्रकार भाषा के पंडित रहे हैं, उसी प्रकार संस्कृत के भी ।
कहने का तात्पयें यह है कि ज॑न साहित्यकारों ने साहित्य की सभी
विधाओं का प्रणयन किया है और रूढ़ भाषा के साथ-साथ जन-भाषा के
विकास में भी समुचित योग दिया है।
विवेच्य युग के साहित्यकारों ने भी अपनी क्षमताओं का उपयोग अधि-
कांशतः परम्पराभों के परिपादवे मेही कियादहै) उन्होने भी गद्य-पद्य भौर
चम्पू, तीनों शैलियों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैँ । हमारे विवेच्य क्षेत्र
मे केवल पद्य अभिप्रेत है ।
प्राचीनो ने पद्य के प्रमुखतः दो रूप मने ह-- प्रबन्ध भौर मुक्तक ।
हमारी विवेचना प्रबन्ध से सम्बन्धित है । सस्कृत-काव्यशास्त्रियो के अनुसार
प्रबन्धकाव्य दो प्रकार का होता है--सहाकाव्य ओर खण्डकाव्य । एक
तीसरा रूप काव्य” भी है, इसको आधुनिकों ने 'एकाथेकाव्य' नाम् दिया
है । प्रस्तुत शोधप्रबन्य मे इन्हीं तीनों काव्य-रूपों के विविध पक्षो पर
यथोचित विस्तार से विचार किया गया है।
यहाँ यह कह देना अभीष्ट है कि मैंने उन्हीं प्रबन्धकाव्यों को अपने
अध्ययन का विषय बनाया है, जिनका कि मेरी दृष्टि में साहित्यिक महत्त्व
है। इन प्रबन्धकाव्यों में महाकाव्य, एकार्थकाव्य एवं खण्डकाव्य तीनों ही
शामिल हैं ।
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