शिव स्वरूप तथा शैव सिद्धांत | Shiv Swaroop Tatha Shaiv Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हद रुदिर्‌ अश्रु विमोचने धातु से णिच्‌ और रक प्रत्यय का योग करने पर यह शब्द निष्पन होता है इस शब्द का अर्थ स्वयमु रोने वाला अथवा रुलाने वाला होता है।* एक अन्य स्थान पर रुद्र के सम्बन्ध में यह लिखा गया है कि वह अन्त में सबको रुलाता है, . संसार रूपी दुःख से जीव को छुड़ाता है, शब्द रूपी उपनिषद के द्वारा प्रतिपादित है, उपासकों को आत्म विद्या का प्रकाश करता है जीव के अज्ञानान्धकार को दूर करता है और स्वयम॒ रोता है ।' रुद्र का स्वरूप कैसा है इस सम्बन्ध में वेद अनेक प्रकार के ._ स्वरूप का कथन करते हैं । जैसे यह कहा गया है कि उनका शरीर अत्यन्त बलशाली है, वे सुन्दर होंठो वाले हैं। वे अपने शिर . पर जटा जूट रखाते हैं, इसलिए उनको कपर्दी कहकर पुकारा जाता है। उनका रंग लाल है और वे जटा जूट वाले हैं ।* १. सि. कौ. पु. र. सो$रोदीद्यदरोदीन्तस्माद्ुद्रस्य रुद्रत्वम्‌ । तै. सं. १1५ 1१19 . सोइरोदीत्‌ यदरोदीत्तस्मादुद्र: ।...... श. ब्रा. ६1१।३ 1१० ३. रोदयति सर्वमन्तकाले इति रूद्र: । रुतू संसारारव्यं दुखम्‌ तत्‌ द्रावयति . अपगमयति विनाशयतीति रुद्र: । रूत: शब्दरूपा: उपनिषद: ताभिद्रयते गम्यते .. प्रतिपाद्यते इति रुद्र: ऋक १1११४ ।१ पर सायण भाष्य ४. इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्‌ वीराय प्रभरामहे मती: । यथा शबसद्‌ द्विपदे चतुष्पदे विश्व॑ पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम्‌ । । ऋग, पू.ररर




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