प्रेम - पुष्पाज्जलि | Prem Puspanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म-पुष्पाअलिं | वात्सल्य तुम्हारा जलद दिखा जाते हैं , मृदु-अंकुर भू-तल भेद निकल आते हैं।। ( ५ ) गा सके तुम्हारे गुण न वेद भी हारे , प्रभु ! कोटि कोटि हैं तुम्हें प्रणाम हमारे । हो तुम से केवल तुम्हीं; कौन तुम सा है ९ तुम बीज-रूप हो देव ! जगत्‌ द्रमसा है॥ ( ६ ) रहती है जन पर सदा तुम्हारी ममता , क्षमता अद्भुत है नहीं कहीं भी समता । सर्वेश ! शक्ति हो तुम्हीं शक्ति हीनों की , गहते हो दुख में बाँह तुम्हीं दोनों की ॥ ৬ अपने बल का अभिमान जिसे होता है , क्यों अन्त समय वह मृतक पड़ा सोता रै? हे विधुवर ! हमको प्राण तुम्हीं देते हो , फिर क्या ? जब तुम निज अंश खींच लेते हो ॥ ( ८ पुष्पाखलि-सम यह्‌ प्रेम-पुस्तिका लीजे , अद्जीकृत कीजे इसे टष्टि-वर दीजे। वाणीपति हो हरि ! तुम्ही, वम्दीं श्रीपति दी, अब अधिक कहें क्या, तुम्हीं हमारी गति हो ॥ ( साहित्य-पन्निका )




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