मध्यकालीन संस्कृत नाटक | Madhyakalin Sanskrit Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.07 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हनुमन्नाटक ध
आये । इन दोनों धाराओं के श्ढोक हनुमज्ञावक में संग्रहीत दें । यथा, राम यन-
अस्थान के पद कहते हैं--
मां बाघते न दि तथा गहनेपु वासो
राज्यारुचिर्जनकवान्घववत्सलस्य ।
रामालुजस्य भरतस्य यथा प्रियायाः
पादारविन्दगमनक्षतिरुतपलादयाः ॥ ३८६
इसके पहले वानप्रस्थ की सान्ध्यबेला में कहा गया है--
रामभरती स्व स््रें कालमधिगस्य हर्पशोभरी नाटयन्ती ुरोपिरा जटावल्क-
लच्छन्रचामरधारिणी दन प्रस्थानराज्याभिपेकारम्भाय राजन दशरथ नमस्क्तु-
मवतरतः !
सत्र भरतः
हा तात मातरददह ज्वलितानलों मां
कामं दहत्वशनिशेलकपाणबाणः |
मध्न्ठु ताद् विपहते भरत: सलीलं
हा रामचन्द्रपदयोने पुनवियोगमू ॥! ३.४
यह सब चनप्स्थान के पहले है ।
किर यदि आगे 'चल कर भरत केकेयी से एछुते हैं कि रास क्योंकर बन गये
तो यह नीचे का प्रकरण स्पष्टतः दूसरी कथाधारा ही का दे । यथा,
मातस्तात कर यातः सुरपतिभवनं हा कुतः पुनरशोकात्
पुत्रश्नचुर्णा त्यमवरजतया यस्य जात: किमस्य |
काननान्तं किमिति किं तथासी चभापे
मद्दाग्वद्धः फलें ते किमिद्द 'तव घराधीशता हा हतो5स्मि ॥ ३८८
केकेयी ने दशरथ-शाप को परिणति देने के उद्देश्य को अपने समक्त रखकर राम
का चनवास मौंगा--यद भी इजुभन्नाटक की एक नई योजना है, जिसका मूठ प्रतिमा-
नाटक में निद्ित है । प्रतिमानाटक में इस योजना के द्वारा केकेयी के 'चरित का श्रेठी-
करण सम्भव हुआ है, जो इस नाटक में नहीं ो सका दे। इसमें केकेयी को दत्त
चित्रित किया गया है ।
कई पथ इजुमशाटक में अपने प्रसंग से घाहर जोड़े हुए प्रतीत होते हैं । यथा,
सुमित्रा का चित्रकूट में छच्मण से कद्दना--
रामं दशरथं विद्धि मां विद्धि जनकात्मजाम् |
अयोध्यामट्दी दिद्धि गच्छ पुत्र यवासुसमू ॥
यदद लूदमण के अयोध्या छोड़ते समय कद जाता 'चादिए था 1
इघर-उघर से पर्धों को लेकर इस नाटक में पिरोते समय श्पनी कोर से
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