विविध आचार्यों द्वारा व्यञ्जना - रक्षार्थ प्रयुक्त युवितयों का आलोचनात्मक अध्ययन | Vividh Aacharyon Dwara Vyajjna - Raksharth Prayukt Yuvityon Ka Aalochnatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
पन्य प्रस्थानों में लक्षणा का আোফিলল सिद्ध हों जानें पर
काव्यशास्त्र में लक्षणा का जो स्वस्य दै. उसे यहाँ पर प्रस्तुत किया जा
रहा ईड ~
सन्षणा शब्व सक्ष ध्वात् ~ यच् प्रत्यय - स्त्वया टाप् करने पर
बनना & 1 এ
विष्ट घ्वनिवावी जाचार्य अभिनवश॒ुष्स के मनुलार ` ~ मृम्च्यार्थ
ब्राथावि पसहकारियों की अपना पं मर्यं सौ प्रतौति कराने লালা शक्ति
सक्षणा दहै - = ममख्यार्थ बाधाविस्लह़कार्यपेंज्ञा. प्रतिमासनर्शाक्तलक्षणा
शस्तिः । ॐ
ঠিবললাছল জী पहले यावि हम -मलकार-शास् प लन्षणा कौ
চিলি वेखना चाहे तो वहां भी सक्षणा क स्पष्ट प्रकत पिलतं दै ।
বন ने स्प के प्रस्लनेग में गणवत्ति का उल्लेग्र किया है । = সামা
वाप्रन तौ লক্কাক্ষিল को ज्ाटश्यसम्बन्धस्पा सक्षणा हीं मानते है । ~
आचार्य ग्रम्मट ने काव्य-प्रकाश में लक्षणा का निरषण इस प्रकार
किया हैँ -
» ग््याथत्राय तथोगे कद्धितोंड्य प्रयोजनात
'मन्योडर्था लक्ष्यत यत् पसा जझ्क्षणाशोपिता क्रिया ७ 1৯
1. लक्षणाशब्वश्च लक्षयातोंयुचप्रत्यये स्लियांटापि सिद्धयसि-न्यायकाशः
पु. 5:98
82. घ्व. लोचन. प्र. इ. पु. 9छ
3... शब्वानामभिधानममणिधा व्यापारौ म्रस्यों गणवबास्तिश्य ।
कव्यालकाय्पारप्नग्रह - + 1441
4. प्रद्रु श्यास्नलमनणा वक्र्तिः |
हे है ~~ শা গর प्न क तु জা শি न | 1
5 + काव्य प्रकाश - जितीय उल्लास - पु. 54
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