विविध आचार्यों द्वारा व्यञ्जना - रक्षार्थ प्रयुक्त युवितयों का आलोचनात्मक अध्ययन | Vividh Aacharyon Dwara Vyajjna - Raksharth Prayukt Yuvityon Ka Aalochnatmak Adhyyan

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Vividh Aacharyon Dwara Vyajjna - Raksharth Prayukt Yuvityon Ka Aalochnatmak Adhyyan by ज्ञानदेवी श्रीवास्तव - Gyandevi Shreevastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 पन्य प्रस्थानों में लक्षणा का আোফিলল सिद्ध हों जानें पर काव्यशास्त्र में लक्षणा का जो स्वस्य दै. उसे यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा ईड ~ सन्षणा शब्व सक्ष ध्वात्‌ ~ यच्‌ प्रत्यय - स्त्वया टाप्‌ करने पर बनना & 1 এ विष्ट घ्वनिवावी जाचार्य अभिनवश॒ुष्स के मनुलार ` ~ मृम्च्यार्थ ब्राथावि पसहकारियों की अपना पं मर्यं सौ प्रतौति कराने লালা शक्ति सक्षणा दहै - = ममख्यार्थ बाधाविस्लह़कार्यपेंज्ञा. प्रतिमासनर्शाक्तलक्षणा शस्तिः । ॐ ঠিবললাছল জী पहले यावि हम -मलकार-शास् प लन्षणा कौ চিলি वेखना चाहे तो वहां भी सक्षणा क स्पष्ट प्रकत पिलतं दै । বন ने स्प के प्रस्लनेग में गणवत्ति का उल्लेग्र किया है । = সামা वाप्रन तौ লক্কাক্ষিল को ज्ाटश्यसम्बन्धस्पा सक्षणा हीं मानते है । ~ आचार्य ग्रम्मट ने काव्य-प्रकाश में लक्षणा का निरषण इस प्रकार किया हैँ - » ग््याथत्राय तथोगे कद्धितोंड्य प्रयोजनात 'मन्योडर्था लक्ष्यत यत्‌ पसा जझ्क्षणाशोपिता क्रिया ७ 1৯ 1. लक्षणाशब्वश्च लक्षयातोंयुचप्रत्यये स्लियांटापि सिद्धयसि-न्यायकाशः पु. 5:98 82. घ्व. लोचन. प्र. इ. पु. 9छ 3... शब्वानामभिधानममणिधा व्यापारौ म्रस्यों गणवबास्तिश्य । कव्यालकाय्पारप्नग्रह - + 1441 4. प्रद्रु श्यास्नलमनणा वक्र्तिः | हे है ~~ শা গর प्न क तु জা শি न | 1 5 + काव्य प्रकाश - जितीय उल्लास - पु. 54




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