मौसम की कहानी | Mausam Ki Kahani
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.61 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
इवान रे टैनहिल - Ivan Ray Tannehill
No Information available about इवान रे टैनहिल - Ivan Ray Tannehill
हरीशचन्द्र विधालंकर - Harishchandra Vidyalankar
No Information available about हरीशचन्द्र विधालंकर - Harishchandra Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हमारा अदृदय वायु-सागर 5
निस्संदेह यद्दी कारण है कि आज तीस खरव वर्पों के वाद भी पृथ्वी
के चारों श्रोर वायु मौजूद है । यह हमारा सौभाग्य हैकि हमारी पृथ्वी
ने वायुमण्डल को इस प्रकार जकडे रखा है । यदि वह ऐसा न करें पाती
त्तो हमारा जीवन कभी भी सम्भव नही था । पृथ्वी भी चांद की तरह
बिना बायुमण्डल की होती--सृत और वंजर । तब इस डरावनी भूमि
को देखने यहा एक भी मानव न होता । हम भोजन के बिना बहुत दिनीं
तक श्रौर पानी के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकते हैं, पर वायु
के बिना केवल कुछ मिनट ही जी सकंगे ।
ऐसा वयों है?
यह इसलिए कि हमारे ऊपर के श्रदृश्य वायु के सागर पर हू
हमारा जीवन पूरी तरह निभर है--हां, हम इस बात पर कभी ध्यार
नहीं देते । हमारे शरीर इस सागर की तलहटी पर रहने के ध्रादी हे
गए हूं । हम सास लेकर फेफड़ों में ग्रावसीजन भरते हैं, वह हमारे रबर
में पेदा हुई फालतू चीज़ों को जलाती श्रयवा श्राक्सीकरित करती है
जिन पेड़-पौधो को खाकर मानव आर दूसरे बनस्पतिमोजी जानव
जीते है, वे प्रपनी झावश्यकताम़ों के लिए वायुमण्डल की कार्मन डाई
आरक्साइड पर निभर रहते है। हम वायु मे से झावसीजन खीचते ह
और कार्बन डाई-ग्राक्साइड बाहर फेकते हैं । पेड-पीधे इससे ठीक उलट
करते हैं । वे काबन डाई-प्राक्साइड सांस में भरते हैं भ्रौर श्रावसी
बे वायु में दापस लौटा देते हैं ।
इसीलिए यह हमारा सौभाग्य है कि वायुमण्डल को श्ाकर्षण तर
फैलाद--दोनों के नियमों का पालन करना पडता है! दायु पल
अवश्य है, पर इतनी नहीं कि हमको छोड़कर चली जाएं!
फेलाव के दिपय में एक वात भौर है । वायु हर स्थान पर ए
समान सही फैलती । वायुमण्डल जितना भ्रघिक ऊंचा होता जाता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...