मौसम की कहानी | Mausam Ki Kahani

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इवान रे टैनहिल - Ivan Ray Tannehill

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हरीशचन्द्र विधालंकर - Harishchandra Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा अदृदय वायु-सागर 5 निस्संदेह यद्दी कारण है कि आज तीस खरव वर्पों के वाद भी पृथ्वी के चारों श्रोर वायु मौजूद है । यह हमारा सौभाग्य हैकि हमारी पृथ्वी ने वायुमण्डल को इस प्रकार जकडे रखा है । यदि वह ऐसा न करें पाती त्तो हमारा जीवन कभी भी सम्भव नही था । पृथ्वी भी चांद की तरह बिना बायुमण्डल की होती--सृत और वंजर । तब इस डरावनी भूमि को देखने यहा एक भी मानव न होता । हम भोजन के बिना बहुत दिनीं तक श्रौर पानी के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकते हैं, पर वायु के बिना केवल कुछ मिनट ही जी सकंगे । ऐसा वयों है? यह इसलिए कि हमारे ऊपर के श्रदृश्य वायु के सागर पर हू हमारा जीवन पूरी तरह निभर है--हां, हम इस बात पर कभी ध्यार नहीं देते । हमारे शरीर इस सागर की तलहटी पर रहने के ध्रादी हे गए हूं । हम सास लेकर फेफड़ों में ग्रावसीजन भरते हैं, वह हमारे रबर में पेदा हुई फालतू चीज़ों को जलाती श्रयवा श्राक्सीकरित करती है जिन पेड़-पौधो को खाकर मानव आर दूसरे बनस्पतिमोजी जानव जीते है, वे प्रपनी झावश्यकताम़ों के लिए वायुमण्डल की कार्मन डाई आरक्साइड पर निभर रहते है। हम वायु मे से झावसीजन खीचते ह और कार्बन डाई-ग्राक्साइड बाहर फेकते हैं । पेड-पीधे इससे ठीक उलट करते हैं । वे काबन डाई-प्राक्साइड सांस में भरते हैं भ्रौर श्रावसी बे वायु में दापस लौटा देते हैं । इसीलिए यह हमारा सौभाग्य है कि वायुमण्डल को श्ाकर्षण तर फैलाद--दोनों के नियमों का पालन करना पडता है! दायु पल अवश्य है, पर इतनी नहीं कि हमको छोड़कर चली जाएं! फेलाव के दिपय में एक वात भौर है । वायु हर स्थान पर ए समान सही फैलती । वायुमण्डल जितना भ्रघिक ऊंचा होता जाता




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