पृथ्वी-पुत्र | Prithvi Putr

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Prithvi Putr by श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परथिवी-पुत्र ३ इसका वन भी अंग्रेजी में ही मिलेगा | ये सब विषय एक जीवित जाति के लेखकों को अपनी और खींचते हैं | क्‍या हिन्दी-साहित्य के कलाकार इनसे उदासीन रहकर भी कुशल मना सकते हैं ? आज नहीं तो कल हमें श्रवश्य ही इस सामग्री को अपने उदार अंक में अपनाना पड़ेगा | यह कार्य जीवन- की उमंग के साथ होना चाहिए । यही साहित्य औ।र जीवन का सम्बंध है। देश के गाय श्रं।र बेल, भेड़ ओर बकरी, घोडे श्र)र हाथी की नस्लो- का ज्ञान कितने लेखकों को होगा ? पालकाप्य मुनि का हस्त्यायुवेंद्‌ श्रथवा शालिहोत्र का श्रश्व-शाख्र श्राज मी मौजूद रहै, पर उनका उत्तराधिकार चाहने वाले मनुष्य नहीं रहे। मदिनाथने माघ को रीका मं (हय लीलावती, नामक ग्रंथ के उद्धरण दिये हैं, जिनसे मालूम होता है कि घोड़ों की चाल अर कुदान के बारे में भी कितना बारीक विचार यहाँ किया गया था । पश्चिमी एशिया के अलशमर्ना गांव में ईसा से १४०० वर्ष पूर्व की एक पुस्तक मिली है, जिसमें अश्वविद्या का पूरा वर्णन है। उसमें संस्कृत के अनेक शब्द जैसे एकावतंन, द्चावतंन, व्यावतंन, आदि घोड़ों की चाल के बारे में पाये गए हैं । उस साहित्य के दाय में हिस्सा मांगने वाले भारतवासियों की श्राज कमी दिखाई पड़ती दै । हमने अपने चारों ओर बसने वाले मनुष्या का भी तो अध्ययन नहीं शुरू किया । देशी नृत्य,लोक-गं.त, लोक का संगीत, सबका उद्धार साहित्य- सेवा का अंग है। एक देवेन्द्र सत्याथी क्या, सेकड़ों सत्याथी' गांव-गांव घूम, तब कहीं इस सामग्री को समेट पावेंगे | इस देश में मान )अपरिमित साहित्य-सामग्री को प्रतिक्षण बृष्टि हो रही है, उसको एकत्र करने वाले पात्रों- की कमी है। लोक की रहन-सहन, वेष अं।र आभूषण, भोजन ओर वस्त्र, सबका अध्ययन करना है। जनपदो की भाषाएं तो साहित्य की साक्षात्‌ कामघेनुएं हैं । उनके शब्दों से हमारा निरुक्तशास्त्र भरा-पुरा बनेगा । हिन्दी शब्द-निरुक्ति जनपदों की बोलियाों का सहारा लिये बिना चल ही नहीं कसती । जनपद की बोलियां कहावतो और मुहावरों की खान हैं । हम चुस्त राष्ट्रभापा बनाने के लिए तरस रहे हैं, पर उसकी जोखानें हैं उनको खोज-




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