हिन्दी साहित्य-सुषमा | Hindi Sahitya-Sushma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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No Information available about बलवन्त लक्ष्मण कोतमिरे - Balvant Lakshman Kotmire
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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असफल होता हैं, वहाँ साहित्य बाजी मार ले जाता हैँ। यही कारण है कि
हम उपनिषदों और अन्य धर्म-प्रन्थों को साहित्य की सहायता लेते देखते हैं ।
हमारे धर्माचार्यों ने देखा कि मनृष्य पर सबसे अधिक प्रभाव मानव-जीवन के
दुःख-सुख के वर्णन से ही हो सकता हैँ और उन्होंने मानव-जीवन की वे कथाएँ
रचीं, जो आज भी हमारे आनन्द की वस्तु हैं। बौद्धों की जातक कथाएँ, तौरेत,
कुरान, इंजील ये सभी मानत्री कथाओं के संग्रह मात्र हैं। उन्हीं कथाओं पर हमारे
बड़े-बड़े धर्म स्थिर हें। वही कथाएँ धर्मों की आत्मा हैं। उन कथाओं को
निकाल दीजिए, तो उस धर्म का अस्तित्व मिट जायगा। क्या उन धर्म-प्रवत्तंकों ने
अकारण ही मानवी जीवन की कथाओं का आश्रय लिया? नही, उन्होने देखा
कि हृदय द्वारा ही जनता की आत्मा तक अपना सन्देश पहुँचाया जा सकता है।
वे स्वयं विशाल हृदय के मनुष्य थे। उन्होंने मानव-जीवन से अपनी आत्मा का मेल
कर लिया था। समस्त मानव-जाति से उनके जीवन का सामंजस्य था, फिर वे
मानव-चरित्र की उपेक्षा कैसे करते ?
आदि-काल से मनुष्य के लिए सबसे समीप मनुष्य हू । हम जिसके सुख-दुःख
हँसने-रोने का मर्म समझ सकते हैं। उसी से हमारी आत्मा का अधिक मेल
होता है। विद्यार्थी को विद्यार्थी-जीवन से, कृषक को कृषक-जीवन से जितनी रुचि
है, उतनी अन्य जातियों से नहीं; लेकिन साहित्य-जगत् में प्रवेश पाते ही यह
भेद, यह पार्थक्य मिट जाता है। हमारी मानवता जैसे विशाल और विराट होकर
समस्त मानव जाति पर अधिकार पा जाती है। मानव-जाति ही नही, चर और
अचर, जड़ और चेतन सभी उसके अधिकार में आ जाते हैं। उसे मानों विष्व की
आत्मा पर साम्राज्य प्राप्त हो जाता है। श्री रामचन्द्र राजा थे; पर आज रंक
भी उनके दुःख से उतना ही प्रभावित होता है, जितना कोई राजा हो सकता
है। साहित्य वह जादू की लकड़ी है, जो पशुओं में, ईट-पत्थरों में, पेड-पौधों
में भी विश्व की आत्मा का दर्गन करा देती है । मानव-हृदय का जगत् इस प्रत्यक्ष
जगत् जैसा नहीं है। हम मनुष्य होने के कारण मानव-जगत् के प्राणियों में
अपने को अधिक पाते ह, उसके सुख-दुःख, हषं और विषाद से ज्यादा विचलित
होते हं । हम अपने निकटतम बन्धू-बांधवों से अपने को इतना निकट नही पाते,
इसलिए कि हम उसके एक-एक विचार, एक-एक उद्गार को जानते हैं। उसका मन
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