साहित्य समीक्षाज्जल | Sahitya Samikshaajjal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कला की भारतीय परिभाषा ... ~ ३ ~
রণ পিসি সপপিস্পি
मध्यमम् । तथा लयाः-हास्यश्ङ्गारयोम॑ध्यमाः । वीभत्स-भयानकयोविलम्बि-
तम्. । बीररौद्राद्भुतेषुद्र तः |
वृत्त--
रतेन भावेन समन्वितं च, तालानुगं काव्यरसानुगञ्च |
गीतानुगं २त्तमुशन्तिधन्यं सुखप्रदं धर्मपिवधंनश्च ॥
चित्रों में भी---
श्रद्भार-हास्य-कर्णा-वीर-रौद्र -भयानकाः ।
वीमत्सादभुत-शान्ताख्या नव चित्र-रसाः स्पृता ॥
और प्रतिमा तो शिला, लकड़ी वा धातुओं में निर्मित चित्र ही है--
यथा चित्र तभैवोक्त' खातपूर्व' नराधिप ।
सुवर्ण रूप्यताम्रादि तन्च॒ लौद्देषु कायरेत ।
शिलादाखषुलौहेषु प्रतिमा करणं भवेत् ॥
इन वाक्यो से जब यद् बात निर्विवाद हो जाती है कि उक्त कलाओं का
उद्देश्य भी रसौं की श्रमिव्यक्ति ही है तब हम निश्चित रूप से कद्द सकते हैं कि
हमारे यहाँ की काव्यवाली उक्त परिभाषाएँ, जो तत्त्वतः एक ही हैं, कला की
ही व्यापक परिभाषा का एकदेशीय सूप हं |
जब ऐसी बात है तो उस परिभाषा में ही इस प्रश्न का उत्तर भी निहित
है, कि दमारे प्राचीनों की कला के सिद्धान्त ( थियरी ) और प्रयोग ( प्रेक्टिस,
ऐल्पिकेशन ) के सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण था । जब कला रस की श्रभिन्यक्ति
है, रमणीयता की अभिव्यक्ति है तो उतने में ही उसके उद्देश्य और सिद्धि
दोनों की, परिभाषा प्रतिपादित हो जाती है | अर्थात् , सिद्धान्त की अवस्था
में भी कला किसी रसात्मक, रमणीयात्मक श्रमिव्यक्ति का नाम है ओर प्रयुक्त
होने पर, काव्य, गान, नास्य, चित्र वा प्रतिमा का रूप पाकर स्फुट होने पर,
ततं दयोने पर भी रस की, रमणीयता की ही अभिव्यक्ति है | तो इसका तात्पय
यह हुआ कि हम कला, कला के लिए ( श्रार फोर श्राटंस् सेक ) मानने
बलि थे । मुमः से पूष्खा,जा सकता है--““ग्रौर, काव्यं यशसे, श्रर्थकृते, व्यव-
टार विदे 9 & 9 ৪ 5 ७ ? ११
अधीर न हजिए, | तनिक इस पर तो विचार होने दीजिए । रस श्रथवा
प्मणीयता की अभिव्यक्ति! का तात्पय क्या है १ कला-क्ला के लिए है क्या
बला ! ये ध्यशसे, श्र्थकृते, व्यवहारविदे, श्रादि तो कला केः श्रवान्तर,
बिलकुल निम्न स्तर के उदेश्य ই । कोड कलाकार यश के लिए श्रपनी कृति
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