अटके आँसू | Atke Aansu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अटके आँसू ओर आरामकुर्सी में सिर सटाकर लेट गया। मेले म॑ जानेवालों की पदध्वनि धीरे-धीरे अस्पष्ट होती गई | चिंतित शंकरम्‌ की आँख অহা ক भपकियाँ लेने लगीं । मन्दिर के घण्यरवों के बीच चढ़ाये जानेवाले नारियलों की ध्वनि सुनाई दे रही थी। नर-नारियों के जनप्रवाह के शोर से कान फटे जा रहे थे। पावती ने नरसिंहम्‌ को रग-विरंगे आइने के चश्मे ओर छरष्ण को बंसी खरीद करके दी। उन दोनों को अपने दोनों हाथ पकड़ाये मन्दिर की ओर पावती आगे बढी जा रही थी) सड़क के दोनों किनारों पर लगी मिठाई की दूकानों ओर खिलोनों की दुकानों के पास जमी हुई भीड़ और उनका उत्साह देने पर पावंती को लगा कि सिवाय उसके बाकी सत्र लोग खुश हैं। कृष्ण के वाद से पावेती अपने पति के प्रेम से वंचित होती जा रही थी। अस्पताल में जब उसका दूसरा प्रसव हुआ था, उसकी स्मृति मात्र से पार्वती के ओंठ फड़फड़ाने लगे | उस प्रसव के समय वह बीमार पड़ी | विषम प्रसव-पीड़ा से बेहोश होकर तीन दिन तक उसने आँखे नहीं खोली थीं । होश आने पर बगल में बच्चे को न पाकर उसका मातृ- दइृदय तड़प उठा था । पावती ने कमरे में देखा । खिड़की से धूप कमरे में आ रही थी | उससे उसने समझा, शाम का समय हो गया है। बड़ी आतुरता के साथ इधर-उधर घूमनेवाली लेडी डाक्टर, सामनेवाली मेज पर जलनेवाला सटे, और गरम पानी से साफ क्रिये जानेवाले शब्य-चिक्रित्सा के ओजार --देखकर पावती के समभने में देर न लगी कि उसका आपरेशन हुआ था। कमरे में उसका शिश्वु कहीं दिखाई नहीं दिया। बह समझ रदी थी, उसका शिद्यु कहीं होशियारी के साथ रखा गया होगा | प्रसव की पीड़ा से उसकी आँखे बन्द हो गह | ग




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