जहाँगीर का आत्मचरित ( जहाँगीरनामा ) | Jahangir Ka Atmcharitra ( Jahangirnama )

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बृजरत्नदास - Brijratnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर (१० फा भी उछेख मिलता है । उसका श्रनुमान करते हुए पृष्ठ ७८ पर लिखता दे कि “श्रागरा के कोपागारों में से केवल एक कोपागार के सोने को एक सददस्र मनुष्य चार सो तुलाशओओं को लेकर दिन रात पाँच मद्दीने तक तोलते रहे तब भी वह पूरा नहीं डुश्रा । इस पर शाही श्राज्ञा से तौलाई रोक दी गई श्रौर यह केवल एक नगर के एक कोप के संघ्ंध में दे । इसी प्रकार वारद सह हाथी तथा बीस सहल् दथिनी का उेख किया है | तीसरे य्रकार की वे प्रतियाँ हैं जिनमें उन्नीसवें वप के कुछ अंश तक का है । इस जहाँगीरनामा के प्र० ७६०-१ पर लिखा है कि 'दो वर्ष हुए कि हममें जो निदशक्तता श्रा गई थी श्रौर श्रत्र तक बनी हुई दे उसके कारणु-**«« लिख नहीं पाते । श्र सोतमिद खाँ मी० «न गया है ।, ,.पहले भी इसे यह कार्य सौंपा जा चुका है इसलिए; हमने श्राज्ञा दी कि जिस तिथि तक हम हाल लिख चुके हैं. उसके बाद से.... . .वदद लिखे श्र हमारे संस्मरण में जोड़ दिया करे 1? इसके श्रनंतर का हाल स्पपटतः मोतमिद खाँ का लिखा है, जो श्रधिक नहीं है । इससे यह निश्चित होता है कि इस प्रकार की प्रतिष्ों पर श्रात्मचरित लेखक ने श्रपनी छाप दे दी है श्रौर ये प्रामाणिकता की फ्रोटि के बाहर नहीं जातीं । ऐसी कुछ प्रतियों के अंत में मुहम्मद हवादी का लिखा तितिम्मा ( परिशिष्ट ) जुड़ा मिलता है जिसमें जहाँगीर के श्रंतकाल तक का विवरण पूरा कर दिया गया है । ऐसी प्रतियों पर वाकेद्याते जहाँगीरी नाम मिलता है श्रौर ये जहाँगीर के चाद प्रस्तुत की गई हैं । इस प्रकार देखा जाता हैं कि जहाँगीरनामा की तीन प्रकार की प्रतियाँ मिलती हैं श्र इसके नाम भी श्ाधे दर्जन प्रकार के सिलते हैं। सन्‌ १८६३ ई० में सर सैयद श्रहमद खाँ ने झंतिम




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